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शिक्षकों को पर्यावरण और लैंगिक पूर्वाग्रह के प्रति सचेत करेगी सरकार, देश भर के शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए शिक्षा मंत्रालय की पहल

नई दिल्ली। पर्यावरण व लैंगिक समानता के प्रति शिक्षकों को जागरूक करने के लिए राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान ने जेंडर ग्रीन टीचर (जीटी) कार्यक्रम शुरू किया है। यह एक छह माह का ऑनलाइन सर्टिफिकेट कोर्स है जिसके जरिये शिक्षकों को लैंगिक पूर्वाग्रह से मुक्त कर पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जाएगा। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की पहल पर राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) ने कोर्स तैयार कर लिया है, जिसके लिए जल्दी हो आवेदन शुरू होगे।

इस महत्वाकांक्षी कदम के जरिये सरकार का उद्देश्य शिक्षकों को प्रशिक्षण देकर बच्चों को पर्यावरण लैंगिक समानता के प्रति जागरूक व ग्रह से मुक्त करना है। वर्षों से समानता व सामाजिक उत्थान के लिए काम करने वाली कनाडा बेस्ड संस्था कॉमनवेल्थ ऑफ लर्निंग (सीओएल) के साथ एनआईओएस ने समन्वय कर इस कोर्स को तैयार किया है। आवेदन शुरू होने पर एनआईओएस की साइट पर डर ग्रीन टीचर कोर्स को बीडियो भी अपलोड की जाएगी। इस बारे में एनआईओएस की निदेशक डॉ. सरोज शर्मा ने कहा कि अगर स्कूल स्तर से बच्चों में कोई बदलाव करना है तो उसके लिए सबसे पहले शिक्षकों को जागरूक करना होगा।


शैक्षणिक स्टाफ भी कर सकेगा आवेदन आवेदन शुरू होने के बाद इसमें शिक्षक व स्कूल के अन्य स्टाफ नामांकन कर सकेंगे। इसके लिए आवेदन करते समय आवेदक को अपनी शैक्षिक पहचान के लिए स्कूल का यूडाइज कोड दर्ज करना होगा। साथ ही उम्र, माता-पिता का नाम, व अन्य सटिफिकेट देने होंगे छह माह के कोर्स में असाइनमेंट भी जमा करना होगा और इसको ऑनलाइन परीक्षा भी ली जाएगी। सफल शिक्षकों को एनआईओएस प्रमाण पत्र देगा


इसलिए जरूरी है कोर्स


शिक्षकों के लिए यह कोर्स इसलिए जरूरी है क्योंकि लैंगिक लैंगिक विदिता की प्रक्रिया पर के भीतर शुरू होती है और कक्षाओं में भी कोई खास तन्देली नहीं आती है। शिक्षा एक उपकरण के रूप में कार्य कर सकती है इन बदल सकती है। को का शिक्ष- 2030 एजेंडा वह मानता है कि लैंगिक समानता के लिए एक ऐसे दृष्टिकोण को आवश्यकता है जो यह सुनिश्चित करे कि लड़कियों लड़कों, महिलाओं और पुरुषों की न केवल शिक्षा तक पहुंच हो कि उस माध्यम से समान रूप से सशक्त भी हो.




जेंडर गैप के 146 देशों की सूची में 135 वें स्थान पर भारत
एनआईओएस की निदेशक डॉ. सरोज शर्मा कहती है कि लैंगिक समानता एक वैश्विक प्राथमिकता है और शिक्षा के अधिकार को बढ़ावा देने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है। ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 के अनुसार वैश्विक स्तर पर लैंगिक असमानता में 68.1% तक की कमी आई है। भावजूद इसके प्रगति की मौजूदा दर से पूर्ण लैंगिक समानता तक पहुंचने में 132 वर्ष लग जाएंगे। ग्लोबल जेंडर गैप (लैंगिक असमानता) रिपोर्ट के मुताबिक 146 देशों को सूची में भारत अब भी 135 वें स्थान पर है। हालांकि पूरी दुनिया में तस्वीर एक जैसी ही है, किसी भी देश ने अभी तक पूर्ण लैंगिक समानता हासिल नहीं की है।

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