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कॉन्वेंट वाले बच्चों का सरकारी स्कूलों में प्रवेश, आय घटने के बाद अभिभावकों ने भारी मन से उठाया कदम

कोरोना ने जीवन के हर पहलू पर बहुत असर डाला है। मार्च के मध्य से बंदी और अनिश्चितता के माहौल में रोजगार एवं आमदनी प्रभावित हुई है। ऐसे में कई अभिभावक भारी मन से अपने बच्चों को प्रतिष्ठित कान्वेंट स्कूलों से निकालकर सरकारी एवं सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में दाखिला करा रहे हैं। बड़ी संख्या में ऐसे अभिभावक हें जो बड़े स्कूलों की तीन-तीन महीने की फीस तक जमा नहीं कर सकें हैं और उन्हें समझ नहीं आ रहा कि क्या करें। करेली के एक अभिभावक ने अपनी बेटी का नाम गर्ल्स हाईस्कूल एंड कॉलेज से कटाकर जीजीआईसी में कक्षा 6 में अंग्रेजी मीडियम में कराया है। वे छोटे व्यापारी हैं और अब आमदनी आधी से भी कम रह गई है। आर्थिक

कारणों से ही एक अन्य अभिभावक ने अपनी बेटी का नाम प्राइवेट स्कूल से कटाकर जीजीआईसी में कक्षा 10 में लिखवाया है। घर-घर चौका बर्तन करने वाली गीता के पति ड्राइवर हैं। दोनों अपनी बेटी को बाबा जी का बगियास्थित घर के पास प्राइवेट अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाते थे। लेकिन आमदनी घटी तो उन्होंने भी अपनी बेटी का नाम जीजीआईसी में 6वीं में करा दिया। इसी प्रकार शिवचरणदास कनन्‍्हैयालाल इंटर कॉलेज में प्राइवेट कॉन्वेंट स्कूल छोड़कर एक बच्चे ने मानविकी वर्ग में 11वींमें प्रवेश लिया है। प्रधानाचार्यों का मानना है कि 6 जुलाई से प्रवेश शुरू हुआ है। आने वाले समय में ऐसे मामले और बढ़ सकते हैं। इसका एक बड़ा कारण हे कि सरकारी स्कूलों में 8वीं तक की पढ़ाई मुफ्त है। कक्षा 9 से 12 तक सालाना फीस मुश्किल से हजार से डेढ़ हजार तक पड़ती है।
— “ कुछ छात्राएं ऐसी हैं जो पहले प्राइवेट कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ती थीं और इस
साल हमारे स्कूल में अंग्रेजी और हिन्दी मीडियम कक्षाओं में प्रवेश लिया है।
हमारे यहां 8वीं तक पढ़ाई मुफ्त है और 9वीं से 12वीं तक मामूली फीस लगती
है । एक अभिभावक तो सालाना फीस सुनकर चौंक गए। उन्हें यकीन ही नहीं हुआ
की इतनी कम फीस में पढ़ाई हो सकती है।
-डॉ. इन्दु सिंह, प्रधानाचार्या जीजीआईसी प्रयागराज

कोरोना के कारण लोगों की आय पर असर पड़ा है, इसमें कोई दो राय नहीं।...
कॉन्वेंट स्कूलों के एक-दो बच्चों ने नाम कटवाकर हमारे यहां प्रवेश लिया है | कुछ
लोगों ने पूछताछ की है।
-लालचंद पाठक, प्रधानाचार्य शिवचरणदास कन्हैयालाल इंटर कॉलेज

कोरोना के कारण कमाई आधी भी नहीं रह गई है। कई घर का चौका- बर्तन छूटा
है, पति भी काम पर नहीं जा पा रहे | ऐसे में पेट पालें कि अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाएं
वैसे भी जब जीजीआईसी जैसे बड़े स्कूल में मुफ्त अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई हो रही
है तो कॉन्वेंट के नाम पर क्यों पैसा पानी में डालें।
-गीता, अभिभावक

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