उत्तर प्रदेश की सत्ता में बैठी फ़ासिस्ट योगी सरकार ने हाल ही में पेश किये गये अनुपूरक बजट में उत्तर प्रदेश के संविदा कर्मियों, आशा कर्मियों, आँगनबाड़ी, रोजगार अनुदेशक, रसोइयों, शिक्षामित्र आदि के मानदेय में 1000 रुपये की वृद्धि की घोषणा की है। घोषणा के दायरे आने वाले कुल कर्मियों की संख्या लगभग पौने आठ लाख पहुँचती है। तलवाचाट मीडिया इसे बहुत बेशर्मी से दिल खोज कर खजाना लुटाने, कर्मियों की सुध लेने, मुराद पूरी कर देने जैसे लच्छेदार शब्दों में पेश कर रहा है।
सत्ता में आने के पहले भाजपा ने शिक्षामित्रों, आशा-आँगनबाड़ी कर्मियों समेत सभी संविदाकर्मियों से बड़े-बड़े वादे किये थे। लेकिन जीतने के बाद पाँच सालों में फ़ासिस्ट योगी सरकार ने संविदाकर्मियों की माँगों से पल्ला झाड़ लिया और अपना हक़ माँगने पर बर्बर दमन और लाठीचार्ज का सहारा लिया। चिकित्सा विभाग के संविदा कर्मियों से लेकर चाहे आँगनबाड़ी में काम करने वाली महिलाओं और एएनएम कार्यकत्रियों तक को नहीं बख्शा गया। योगी सरकार की सबसे क्रूर चेहरा एम्बुलेंस कर्मियों के मामले में देखने को मिला, जिन्होंने कोविड के समय में जान हथेली पर रखकर अपनी ड्यूटी की। बदले में जब उन्होंने अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाई तो उन्हें बर्खास्त करके नयी भर्ती शुरु कर दी गयी।
प्रदेश के सभी संविदाकर्मियों की माँग है कि उन्हें स्थायी रोज़गार दिया जाये। आँगनबाड़ी और आशा जैसे स्कीम वर्कर्स भी राज्य कर्मचारी का दर्जा पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। लेकिन चुनाव के ऐन पहले योगी सरकार मानदेय में 1000 रुपये की वृद्धि का झुनझुना पकड़ा रही है।
आज संविदा कर्मियों के आन्दोलन समेत समूचा मज़दूर आन्दोलन गतिरोध का शिकार है। बहुत सी यूनियनों और संगठनों में चुनावबाज़ पार्टियों के नेता और दलाल काबिज़ हैं। इनमें से कई तो अनुपूरक बजट में इस मानदेय वृद्धि की घोषणा से ऐन पहले कुछ रस्मी प्रदर्शन करके अपनी पीठ थपथपा रहे थे कि सरकार ने इनसे डरकर यह वृद्धि की है। इतना ही नहीं, ये नेताओं और अधिकारियों की दलाली करके पैसा गबन करने, अपने चुनावी लाभ के लिए आन्दोलनों का सीढ़ी के तौर पर इस्तेमाल करने का काम करते रहते हैं। अन्य पार्टियों के जो नेता आज बड़े-बड़े वादे करके सहानुभूति बटोरने का काम कर रहे हैं, वे भी मौक़ा मिलने पर अपना रंग दिखा चुके हैं। आज आन्दोलन को ऐसे नेताओं और दलालों के कब्ज़े से बाहर निकलकर एक क्रान्तिकारी दिशा देने की ज़रूरत है। बिगुल मज़दूर दस्ता प्रदेश के सभी संविदा कर्मियों का आह्वान करता है कि मानदेय में इस 1000 रुपये की चवन्नीछाप बढ़ोत्तरी के झाँसे में फँसने की बजाय पक्के रोज़गार और सरकारी कर्मचारी का दर्जा पाने की अपनी माँग पर संघर्ष को आगे बढ़ाएँ।

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