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क्या आम शिक्षकों के लिए ही है शासनादेश! सियासत हो रही हाबी

फिरोजाबाद:-
संबद्धीकरण बचाने के लिए कई शिक्षक नेताओं की शरण में हैं। जनप्रतिनिधियों से पत्र लिखवाकर अधिकारियों पर दबाव की सियासत की जा रही है। इससे शिक्षक समाज में आक्रोश है। शिक्षकों का कहना है कि शासनादेश सभी के लिए समान है तो फिर जनप्रतिनिधियों के पत्रों की आड़ में क्यों शिक्षकों को आम एवं खास बनाया जा रहा है।


शासन से संबद्धीकरण का आदेश आने के बाद में कइयों को स्कूल से रिलीव कर दिया है। वहीं कुछ शिक्षक अभी भी जमे हुए हैं। इनमें से कुछ ने नेताओं के पत्र खंड शिक्षाधिकारियो को सौंपे हैं। ऐसे में शिक्षकों में आक्रोश है शिक्षकों का कहना है कि अगर शासनादेश हुआ है तो एक समान लागू करें। जनप्रतिनिधि भी सरकार से बात करें एवं स्थानांतरण तथा समायोजन कराएं। चहेतों को पत्र जारी कर शासनादेश के विपरीत संबद्धीकरण का लाभ दिलाना कहां तक उचित है।

शिक्षण कार्य सूचारू रखने के लिए हो

शिक्षकों का कहना है कि जहां पर एक शिक्षक है, वहां पर शिक्षकों का संबद्धीकरण किया जाए तो कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन कई शिक्षकों वाले स्कूल में सिर्फ सिफारिशों पर संबद्धीकरण करना शिक्षकों के साथ भेदभाव है।

- सभी शिक्षकों के लिए एक शासनादेश होना चाहिए। अधिकारियों को शिक्षकों में आम एवं खास का अंतर न होना चाहिए। अधिकारी सुविधानुसार संबद्धीकरण कर दूसरों पर डाल देते हैं। जनप्रतिनिधियों को शिक्षकों को दूसरे स्कूलों में भेजना है तो समायोजन या स्थानांतरण कराने के आदेश कराएं। नेताओं के पत्रों के नाम पर शिक्षकों में भेदभाव नहीं होना चाहिए।

- कमलकांत पालीवाल, जिला उपाध्यक्ष प्राथमिक शिक्षक संघ

- शासन ने जब संबद्धीकरण को खत्म कर दिया है तो फिर कोई भी नहीं रहना चाहिए। अगर कहीं स्कूल बंद हो रहा है या किसी शिक्षक को परेशानी है तो विशेष परिस्थिति में संबद्धीकरण उचित है, लेकिन सिफारिशों के आधार पर शिक्षकों के बीच में भेदभाव नहीं होना चाहिए।

- यतेंद्र यादव, अध्यक्ष प्राथमिक शिक्षक संघ

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