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अनुदेशकों के मामले में यूपी सरकार से जानकारी मांगी

प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत अंशकालिक अनुदेशकों के नवीनीकरण के संबंध में जारी शासनादेश दिनांक 21 मार्च 2023 के खंड चतुर्थ को चुनौती देने वाली याचिका पर जानकारी राज्य सरकार से तलब की है। यह आदेश न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की एकल पीठ ने आगरा के शैलेन्द्र सिंह और 33 अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। कोर्ट अब इस मामले में 12 जुलाई को सुनवाई करेगी।

याचीगण के अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत किया कि वे सभी बेसिक शिक्षा बोर्ड, यूपी द्वारा संचालित उच्च प्राथमिक विद्यालयों में अंशकालिक प्रशिक्षक के पदों पर काम कर रहे हैं। शासनादेश में यह प्रावधान है कि प्रथम चरण में अंशकालिक अनुदेशकों के अनुबंध का नवीनीकरण केवल उन्हीं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में किया जाएगा जहां छात्रों की संख्या सौ से अधिक है और जहां पहले से ही अंशकालिक अनुदेशक कार्यरत हैं। शर्त यह है कि उक्त नवीनीकरण रिक्त पदों के सापेक्ष किया जाएगा।

सुनवाई के दौरान अधिवक्ता ने बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 से जुड़ी तीसरी अनुसूची की ओर कोर्ट का ध्यान आकर्षित किया। कहा कि इस अनुसूची में यह प्रावधान है कि सभी उच्च प्राथमिक विद्यालयों में छात्रों की संख्या सौ से अधिक होने पर अनिवार्य रूप से कला शिक्षा, स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा एवं कार्य शिक्षा विषय के लिए अंशकालिक अनुदेशकों की नियुक्ति की जानी है। इसके अलावा अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि 2009 के उपरोक्त अधिनियम का अत्यधिक प्रभाव है और इसलिए यह राज्य सरकार पर बाध्यकारी है।

यह भी तर्क दिया गया कि हालांकि, सौ से अधिक छात्रों की संख्या वाले प्रत्येक उच्च प्राथमिक विद्यालय में याचीगण की तरह अंशकालिक अनुदेशकों की नियुक्ति की जानी है। लेकिन राज्य सरकार ने ऐसा करने की बजाय मौजूदा अंशकालिक अनुदेशकों का नवीनीकरण करते हुए निर्णय लिया गया कि नवीनीकरण केवल उन उच्च प्राथमिक विद्यालयों में किया जाएगा, जहां सौ से अधिक छात्र हैं और जहाँ अंशकालिक अनुदेशक कार्यरत हैं और पद रिक्त हैं।


कहा गया कि यदि राज्य सरकार को दिनांक 21 मार्च 2023 के सरकारी आदेश में निहित उपरोक्त नीति को लागू करने की अनुमति दी जाती है तो याचीगण जैसे अधिकांश अंशकालिक अनुदेशक का कार्यकाल नवीनीकृत नहीं हो पाएगा। यह 2009 के अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है

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