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Primary ka master: एमडीएम से रसोइया और शिक्षक दोनों परेशान

बस्ती। जिले के 2206 परिषदीय स्कूलों में तैनात लगभग 6,500 रसोइया आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। उन्हें चार माह से मानदेय नहीं मिला है। वहीं शिक्षकों को मध्याह्न भोजन की लागत बढ़ने से बच्चों को कन्वर्जन कास्ट की तय धनराशि में ही पौष्टिक भोजन देना मुश्किल हो गया है।

जहां रसोइया परेशान होकर मजदूरी करने के लिए विवश हैं, तो शिक्षकों को गुणवत्तापूर्ण भोजन बनवाना कठिन हो गया है। जिले में 2206 परिषदीय विद्यालय चल रहे हैं। इसमें लगभग 1.40 लाख बच्चे पंजीकृत हैं। बच्चों को एमडीएम के लिए 6500 रसोइया तैनात है। मौजूदा समय में वह आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही हैं। प्रत्येक रसोइया को मानदेय के रूप में प्रतिमाह दो हजार रुपये मिलते हैं। रसोइया को मार्च, अप्रैल, जुलाई व अगस्त का मानदेय अब तक नहीं मिल सका है। मई व जून का मानदेय नहीं मिला है। मानदेय न मिलने से रसोइया के सामने आर्थिक मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। वह मजदूरी करने के लिए विवश होना पड़ रहा है।

महंगाई बढ़ने से खाद्य सामग्री के दाम बढ़ने से शिक्षकों को मुश्किलों का समाना करना पड़ रहा है। परिषदीय स्कूलों में शिक्षकों को मध्याह्न भोजन की कन्वर्जन कास्ट तय धनराशि में ही शिक्षकों को पौष्टिक भोजन देना पड़ रहा है। ऐसे में शिक्षक मुश्किल में हैं कि तय कन्वर्जन कास्ट में बच्चों को गुणवत्तापूर्ण भोजन कैसे खिलाया जाए। शासन ने कंवर्जन कास्ट प्राथमिक स्तर पर प्रति छात्र 5.45 रुपये और उच्च प्राथमिक स्तर पर प्रति छात्र 8.17 रुपये की दर निर्धारित है। भोजन बनाने के लिए गेहूं व चावल निशुल्क मिल रहा है, लेकिन ईंधन, तेल, मसाला, दाल, सब्जी, नमक आदि सभी चीजें इसी कन्वर्जन कास्ट से खरीदी जाती है।

शिक्षकों का कहना है कि अगर तेल दो वर्ष पहले सौ रुपये प्रति लीटर था, वर्तमान में यह दो सौ रुपये के आसपास हो गया है। मसाला व अन्य सामग्री भी महंगी है। गैस के दाम भी लगभग दोगुने हो गए हैं। इससे मध्याह्न भोजन बनवाने में कठिनाई हो रही है। इसी धनराशि में प्रति सप्ताह बच्चों को दूध भी देना पड़ता है, और फल देना होता है। शिक्षक किसी तरह उसी में पूरा मध्याह्न भोजन बनवा रहे हैं, लेकिन कन्वर्जन कास्ट नहीं बढ़ाई गई तो इस लागत में भोजन बनाना कठिन हो जाएगा।

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मानदेय भुगतान की प्रक्रिया चल रही है। शीघ्र ही भुगतान हो जाएगा। एमडीएम की कास्ट शासन की ओर से निर्धारित होती है।

-अनूप कुमार, बीएसए

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