इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2018 की उत्तर प्रदेश पुलिस कांस्टेबल भर्ती से जुड़े मामले में कहा है कि केवल प्रशिक्षण की तिथियों या बैच के आधार पर चयनित अभ्यर्थियों के वेतन में अंतर नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा अपनाई गई उस नीति को असंवैधानिक और मनमाना करार दिया, जिसके तहत एक ही चयन प्रक्रिया से नियुक्त कांस्टेबलों को अलग-अलग प्रशिक्षण बैचों में भेजने के आधार पर वेतन संरक्षण (पे प्रोटेक्शन) के लाभ से वंचित किया गया था। कोर्ट ने कहा कि जब सभी अभ्यर्थी एक ही विज्ञापन, एक ही चयन प्रक्रिया और एक ही अंतिम चयन सूची से नियुक्त किए गए हैं तो उन्हें समान सेवा लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट के इस निर्णय से भर्ती 2018 के हजारों कांस्टेबलों को समान वेतन और सेवा अधिकार सुनिश्चित होने का रास्ता साफ हो गया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह एवं न्यायमूर्ति स्वरूपमा चतुर्वेदी की खंडपीठ ने राज्य सरकार की विशेष अपील पर दिया। विशेष अपील में राज्य सरकार ने एकल पीठ के उस निर्णय को चुनौती दी थी, जिसमें भूतपूर्व सैनिक श्रेणी के याचियों को पहले प्रशिक्षण बैच के समान वेतन संरक्षण देने का निर्देश दिया गया था। खंडपीठ ने राज्य की सभी विशेष अपीलों को खारिज करते हुए एकल पीठ के फैसले की पुष्टि कर दी।
राज्य सरकार का कहना था कि कोविड-19 महामारी और प्रशिक्षण केंद्रों में सीमित बुनियादी ढांचे के कारण भर्ती प्रक्रिया के तहत चयनित अभ्यर्थियों को चार अलग-अलग चरणों में प्रशिक्षण देना पड़ा। इसी कारण पहले बैच को अन्य बैचों की तुलना में पहले नियुक्ति और वेतन लाभ मिले।


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