मानदेय पर आधारित शिक्षकों के नियमितीकरण से बाहर हो सकते हैं कई शिक्षक
प्रयागराज : प्रदेश के अशासकीय महाविद्यालयों में मानदेय पर कार्यरत असिस्टेंट प्रोफेसरों के अब नियमितीकरण का सुनहरा अवसर आया तो कई बाहर होंगे। नियुक्ति पत्र देने से पहले परीक्षण में सामने आया है कि कुछ निजी महाविद्यालयों की ओर से शासनादेश के अनुसार नियुक्त असिस्टेंट प्रोफेसर 1998 के दौरान यूजीसी व भर्ती आयोगों की ओर से निर्धारित अर्हता ही नहीं पूरी कर रहे हैं। ऐसे शिक्षक मैनेजमेंट के रहमोकरम पर शिक्षण कार्य करते रहे और अब नियमित होने में पेंच फंसा है।
प्रदेश शासन के निर्देश पर उच्च शिक्षा निदेशालय उप्र, सात सौ से अधिक मानदेय शिक्षकों को महाविद्यालयों में नियमित करने की प्रक्रिया में जुटा है। नवंबर में ही इन्हें नियुक्ति पत्र दिया जा सकता है। सभी के शैक्षणिक, दावे और यूजीसी की ओर से निर्धारित अर्हता पूरी करने के अभिलेख मांगे गए थे। क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारियों के माध्यम से भेजे गए इन दस्तावेजों का निदेशालय में इन दिनों परीक्षण हो रहा है। जिसमें शिक्षकों के ऐसे प्रकरण भी सामने आ गए हैं जिन्हें सात अप्रैल 1998 के शासनादेश के अनुसार रखा था लेकिन, वे 1998 में यूजीसी, उप्र लोक सेवा आयोग, उप्र उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग की ओर से प्रवक्ता / असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर नियुक्ति के लिए निर्धारित अर्हता ही नहीं रखते हैं। कई ऐसे प्रकरण भी सामने आए हैं जिसकी अशासकीय महाविद्यालयों की ओर से निकाले गए विज्ञापन के बाद मैनेजमेंट कोटे से नियुक्ति हुई, इस नियुक्ति से पहले महाविद्यालयों की ओर से प्रथम, द्वितीय व तृतीय प्राथमिकता वाले अभ्यर्थियों का विवरण अनुमोदन के लिए उच्च शिक्षा निदेशालय को भेजना अनिवार्य था लेकिन, महाविद्यालयों ने नियुक्ति करने से पहले न तो निदेशालय को विवरण भेजे गए न ही नियमानुसार अनुमति ली गई। निदेशक उच्च शिक्षा उप्र डा. प्रीति गौतम का कहना है कि परीक्षण अभी चल रहा है। कई प्रकरण सामने आए हैं। जिनकी अर्हता नहीं है उनके नियमितीकरण के संबंध में शासन को वास्तविकता से अवगत कराया जाएगा। शिक्षकों की संख्या के संबंध में निदेशालय का कहना है कि अभी परीक्षण चल रहा है। संख्या घट-बढ़ सकती
प्रदेश शासन के निर्देश पर उच्च शिक्षा निदेशालय उप्र, सात सौ से अधिक मानदेय शिक्षकों को महाविद्यालयों में नियमित करने की प्रक्रिया में जुटा है। नवंबर में ही इन्हें नियुक्ति पत्र दिया जा सकता है। सभी के शैक्षणिक, दावे और यूजीसी की ओर से निर्धारित अर्हता पूरी करने के अभिलेख मांगे गए थे। क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारियों के माध्यम से भेजे गए इन दस्तावेजों का निदेशालय में इन दिनों परीक्षण हो रहा है। जिसमें शिक्षकों के ऐसे प्रकरण भी सामने आ गए हैं जिन्हें सात अप्रैल 1998 के शासनादेश के अनुसार रखा था लेकिन, वे 1998 में यूजीसी, उप्र लोक सेवा आयोग, उप्र उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग की ओर से प्रवक्ता / असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर नियुक्ति के लिए निर्धारित अर्हता ही नहीं रखते हैं। कई ऐसे प्रकरण भी सामने आए हैं जिसकी अशासकीय महाविद्यालयों की ओर से निकाले गए विज्ञापन के बाद मैनेजमेंट कोटे से नियुक्ति हुई, इस नियुक्ति से पहले महाविद्यालयों की ओर से प्रथम, द्वितीय व तृतीय प्राथमिकता वाले अभ्यर्थियों का विवरण अनुमोदन के लिए उच्च शिक्षा निदेशालय को भेजना अनिवार्य था लेकिन, महाविद्यालयों ने नियुक्ति करने से पहले न तो निदेशालय को विवरण भेजे गए न ही नियमानुसार अनुमति ली गई। निदेशक उच्च शिक्षा उप्र डा. प्रीति गौतम का कहना है कि परीक्षण अभी चल रहा है। कई प्रकरण सामने आए हैं। जिनकी अर्हता नहीं है उनके नियमितीकरण के संबंध में शासन को वास्तविकता से अवगत कराया जाएगा। शिक्षकों की संख्या के संबंध में निदेशालय का कहना है कि अभी परीक्षण चल रहा है। संख्या घट-बढ़ सकती