12091 vs 72825 शिक्षक भर्ती विशेषांक अधिवक्ता ऋषि श्रीवास्तव की कलम से Shikshak Bharti, - Get Primary ka Master Latest news by Updatemarts.com, Primary Ka Master news, Basic Shiksha News,

12091 vs 72825 शिक्षक भर्ती विशेषांक अधिवक्ता ऋषि श्रीवास्तव की कलम से Shikshak Bharti,

12091 vs 72825 शिक्षक भर्ती विशेषांक अधिवक्ता ऋषि श्रीवास्तव की कलम से Shikshak Bharti,


12091 विशेषांक
आजकल माननीय सर्वोच्च न्यायालय में 12091 का मामला तूल पकड़ रहा है जबकि 25 जुलाई 2017 को सभी मामले पूर्णतया डिसाइड हो चुके हैं! लेकिन 12091 का मामला आज भी शांत नहीं हो रहा है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने जब 75000 प्रत्यावेदन मांगे तो उत्तर प्रदेश सरकार ने मात्र 12091 लोगों को ही सही माना परंतु यह लिस्ट पूर्णतया गलत साबित हुई और सेक्रेट्री बेसिक शिक्षा परिषद संजय सिन्हा द्वारा यह कहा गया कि यदि इस लिस्ट में किसी का नाम नहीं है और वह जिले की कटऑफ में आता है तो वह काउंसलिंग करा सकता है परंतु 72825 की भर्ती के मामले को कुछ अपूर्ण ज्ञानी लोगों ने इसे अपनी रोजी-रोटी का धंधा बना लिया। 12091 के मामले पर महामना और महान विधि विशेषज्ञ मनोज मौर्य ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश जिसमें 12091 का मामला लिखा हुआ था। उसके अंतरिम आदेश पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय में अवमानना याचिका फाइल की मतलब कंटेंप्ट पिटिशन फाइल इसी के आधार पर कई लोगों ने कई तरह की कंपटीशन फाइल की जिसमें कोई 24 फरवरी के लोगों की कोई नियुक्ति मांग रहा था कोई 90 और 105  के मामले पर नियुक्ति मांग रहा था कई तरह की अवमानना याचिका माननीय सर्वोच्च न्यायालय में 25 जुलाई 2017 के पहले वर्ष 2015 से लेकर 2016 तक फाइल हुई। माननीय सर्वोच्च न्यायालय सभी मामलों को पूर्ण रूप से डिसाइड करते हुए 25 जुलाई को फाइनल आदेश लिख दिया और सभी जितनी भी कंटेंप्ट पेंडिंग थी वह भी इसी मामले के साथ डिस्पोज हो गई परंतु 72825 में 7 दिसंबर 2015 के बाद लोगों को नौकरी दिलाने के नाम पर एक नया ट्रेंड आ गया कि किसी भी याचिका के साथ जुड़ जाओ और नौकरी पाओ काश अगर ऐसा संभव होता तो हर सरकारी नौकरी में कोई न कोई वाद और विवाद उत्पन्न होते हैं और व्यक्ति किसी भी ऐरे गैरे वकील को पकड़कर 10 से ₹12000 में उस मामले में याचिका फाइल कर दे और याची के आधार पर नौकरी वाले अगर ऐसा संभव होता तो संभवत आज हिंदुस्तान में कोई बेरोजगार ना होता। 25 जुलाई 2017 के जजमेंट के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचियों को नौकरी के नाम पर कई पिटिशन फाइल हुई जिसे न्यायमूर्ति बघेल साहब ने पूरा बंच बनाते हुए खारिज कर दिया इसके उपरांत मामला डबल बेंच गया डबल बेंच ने भी उसी जजमेंट अपहोल्ड करते हुए मामला खारिज कर दिया और यह कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने सारे इश्यू तय कर दिया, अब किसी भी व्यक्ति को एक भी नौकरी नहीं दी जा सकती ठीक इसके उपरांत एक व्यक्ति ने फ़रवरी से मार्च 2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका फाइल की और जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी के यहां से कोर्ट को मिस लीड करते हुए एक जजमेंट प्राप्त किया जो कि 12091 के मामले में था जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी के इस जजमेंट के बाद पुनः इलाहाबाद हाई कोर्ट में 12091 के मामले में भीड़ इकट्ठा हुई और पानी की टंकी में कूदने वाले मनोज मौर्य ने इस मामले को पुनः भुनाने की कोशिश करते हुए कई याचिकाएं फाइल की जिसमें एक याचिका suresh kumar maurya vesrsus state of uttar pradesh file हुई इसमें 1260 petitioner की थी यह मामला न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा की बेंच में गया जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा पूर्ण रूप से तकनीकी जज है और उन्होंने मामले को और उसकी बारीकी को समझते हुए इस मामले में पूर्णतया फ्रॉड समझ लिया और स्टेट आफ उत्तर प्रदेश से शॉर्ट काउंटर मांगा स्टेट आफ उत्तर प्रदेश के स्पेशल सेक्रेट्री रामलिंगम ने सभी आदेशों को कोड करते हुए कोर्ट को यह अवगत कराया कि बचे हुए पदों को सुप्रीम कोर्ट ने हमें लिबर्टी देते हुए फ्रेश विज्ञापन निकालने को कहा है। न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा जी ने मामले की बारीकी को समझते हुए मुकदमे को बिना मेरिट का बताते हुए और मूर्खता पूर्ण समझते हुए मामले को खारिज कर दिया। भारत में एक कहावत है जिसके मुंह में हराम का खून लग जाए वह कदापि मेहनत से ₹1 भी कमाना नहीं चाहता है, पुनः माननीय सर्वोच्च न्यायालय में मनोज मौर्य ने petitioner का नाम बदलते हुए कंटेंप्ट पिटिशन फाइल की और याचियों से पुनः वसूली का खेल पुनः चालू हुआ 12091 के मामले में सिर्फ एक खेल खेला गया की 25 जुलाई 2017 के पहले यह कंटेंप्ट पिटिशन जोकि 12091 के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 25 जुलाई 2017 के पहले अंतरिम आदेश हुआ था मनोज मौर्य ने फाइल की इसके उपरांत इलाहाबाद हाईकोर्ट में सिर्फ पेटीशनर का नाम बदला गया और रिट  और पुनः सर्वोच्च न्यायालय में कंटेंप्ट पिटिशन नाम बदलकर फाइल हुई सिर्फ पेटीशनर के नाम बदले गए लेकिन issue वही 12091 रहा सिर्फ इलाहाबाद हाईकोर्ट से लेकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय तक आज भी कोर्ट को मिस लीड किया जा रहा है जबकि सबसे बड़े मूर्ख स्टेट की पैरवी करने वाले महान लोग हैं जिनको यह छोटी सी छोटी चीजें नहीं पता है इसी के साथ में माननीय सर्वोच्च न्यायालय में एक नया इश्यू एक इंप्लीडमेंट के माध्यम से फाइल हुआ है जिसका शीर्षक है कि 12091 में 90 और 105 का नाम क्यों नहीं है जिन महानुभाव का यह शीर्षक है वह भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय में कंटेंप्ट पिटिशन फाइल करके इशु तय करवा चुके हैं जो कि 25 जुलाई के जजमेंट में 90 और 105 और 24 फरवरी विभिन्न प्रकार के जो मामले थे वह डिसाइड हो चुके हैं। सर्वोच्च न्यायालय में व इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लोगों ने अपनी नाना प्रकार की दुकाने खोल रखी है परंतु सबसे बड़े महान और मूर्ख तो वह लोग हैं जो इन दुकानों पर अपनी बोली लगवाने जाते हैं, और इन बेवकूफ आना मामलों में अपनी नियुक्ति के बाट जोह रहे हैं उत्तर प्रदेश में आज लोगों ने यह भी नहीं सोचा की एक बीएड अभ्यर्थी चंद रुपयों के लिए अपने स्वाभिमान से समझौता करते हुए दूसरे बीएड अभ्यर्थी की हमेशा जेब ही ताकि और यह सोचा कि इस जेब में कितना पैसा है उसे निकाल कर अपनी जेब में रख लिया जाए मेरे अनुसार जीवन नौकरी से कटता या स्वयं की मेहनत की कमाई से ना कि चंद हजार या 2000 की कमाई से हजार और ₹2000 का चंदा देने से किसी अभ्यर्थी का कुछ भी नहीं बिगड़ता है परंतु आपके 1000 और 2000 का चंदा देने से आप उन लोगों का जीवन संवार रहे हैं जिनको जजमेंट तो दूर की बात एक पैरा हिंदी में निकालने में असमर्थ है। आप सभी को स्क्रीनशॉट में इलाहाबाद हाईकोर्ट से लेकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय से हुए 25 जुलाई 2017 के पहले जितनी भी कंपटीशन हुई और इस मामले के साथ डिस्पोज हुई उपलब्ध करा रहा हूं अपनी बुद्धि का एक परसेंट भी प्रयोग करें तो आप नए-नए यह आपका खून चूसने वाले लोग नहीं पैदा होते। आप आज भी टूटी साइकिल और फटी हुई गद्दी पर चलने को मजबूर है लेकिन आपके एक-एक करके दिए हुए पैसों से आज आपके ही नेता लग्जरी गाड़ियों से चल रहे है। मेरे अनुसार कानून में कोई ऐसी लाइन नहीं लिखी हुई है की एक अवमानना याचिका डिसाइड होने के बाद पुनः उस मामले पर किसी भी प्रकार की कोई अवमानना याचिका बने यह कोर्ट को कंसील करते हुए सभी वास्तविक मैटेरियल से दूर रख कर कार्य किया जा रहा है यदि यह मामला कोर्ट के सामने कभी भी आ गया तो नौकरी तो दूर की बात सुप्रीम कोर्ट से तिहाड़ जेल ज्यादा दूर नहीं और इसमें वह लोग फसेंगे जो वाकई में निर्दोष हैं और अपनी नौकरी के लिए बाट जोह रहे हैं। 
(1) पहली कंटेंप्ट पेटीशन 199/2016 दिनांक 4 अप्रैल 2016 को मनोज मौर्या ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय में फाइल की जो कि 12091 की लिस्ट को पूरा करने के लिए थी और यह पेटीशन 25 जुलाई 2017 को डिसाइड हुई।

(२) सुल्तान अहमद द्वारा शीर्षक १२०९१ में ९० और १०५ का नाम क्यों नहीं कंटेंप्ट petetion नंबर १९९/१५ जो २५ जुलाई को डिसाइड हुई।

इसके उपरांत मनोज मौर्य ने petetioner का नाम बदलकर सुरेश मौर्य बनाम उत्तर प्रदेश सरकार 1260 याचियों की तरफ से फाइल हुई और lead पेटीशन राघवेन्द्र प्रताप सिंह के जजमेंट के साथ कवर्ड होते हुए दिनांक 26 अप्रैल 2018 को जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्रा की बेंच से खारिज हुई। इसके ठीक उपरांत पुनः मनोज मौर्य ने petetioner का नाम बदलते हुए सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका फाइल हुई और पुनः याचियों के साथ वसूली का खेल चल रहा है। मेरे अनुसार ये ऐसे महान लोग है जो सालो एक लाश को वेंटिलेटर पर रखकर यह बता सकते हैं कि अभी यह लाश जिंदा है।
इसी इसी मामले में प्राइमरी शिक्षक भर्ती में सभी को अंतरिम आदेश पर नियुक्त दिलाने वाले एससीईआरटी पर धरना जैसा बिगुल फूंक कर अब भारतीय बेरोजगार पार्टी से चुनाव लड़ने जा रहे हैं वह भी इस कंटेंप्ट पिटिशन में कंटेंप्ट फाइल कर चुके हैं अब अंतरिम आदेश और क्यूरेटिव जैसे मामले कहां चले गए धन्य है यह प्राथमिक शिक्षक भर्ती और उनकी नेतागिरी करने वाले ऐसे निम्न सोच के लोगो का मेरा नमन है मेरा एक छोटे भाई होने के नाते सभी अभ्यर्थियों को सच्चाई से मात्र जागृत करना था जिससे यह परजीवी लोग आपका शोषण ना कर सके और आप इस शोषण से बचें बाकी स्क्रीनशॉट में 12091 की असली हकीकत देख सकता है क्योंकि मुझे 2011 से आज तक जितनी भी भर्तियां हुई है उन सभी भर्तियों के अब तक आए हुए जजमेंट और अवमानना याचिका पर आए हुए जजमेंट सभी मुंह जवानी रटे हुए मुझसे कोई भी काउंटर या कोई भी जजमेंट छूटा हुआ नहीं है। धन्यवाद।
आपका स्नेहिल
अधिवक्ता ऋषि श्रीवास्तव

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