69000 शिक्षक परीक्षा के परीक्षार्थियों को बधाई, कामयाबी मिलेगी: देखें वरिष्ठतम पत्रकार रवीश कुमार की फेसबुक पोस्ट - Get Primary ka Master Latest news by Updatemarts.com, Primary Ka Master news, Basic Shiksha News,

69000 शिक्षक परीक्षा के परीक्षार्थियों को बधाई, कामयाबी मिलेगी: देखें वरिष्ठतम पत्रकार रवीश कुमार की फेसबुक पोस्ट

69000 शिक्षक परीक्षा के परीक्षार्थियों को बधाई, कामयाबी मिलेगी



उत्तर प्रदेश में 69000 सहायक शिक्षकों की बहाली से जुड़े परीक्षार्थियों ने अपनी लोकतांत्रिकता का अच्छा परिचय दिया है। अदालती तारीख़ों में परीक्षा का परिणाम सात-आठ महीनों से फंसा है। मैं इस परीक्षा से जुड़े छात्रों के प्रदर्शनों की तस्वीरें देखता रहता हूं। रविवार को एक तस्वीर मिली जिसमें बहुत सारी लड़कियां अपने हाथ ऊपर की हुई हैं। सबने अपने हाथ जोड़े हैं ताकि सामने खड़ी पुलिस लाठी न बरसाए। उनकी इस अपील का पुलिस पर असर भी हुआ। राज्य की क्रूरताओं का सामना करने का नैतिक बल गांधी जी देकर गए हैं। यह वही नैतिक बल है जिसके दम पर लड़कियों ने अपनी और साथी लड़कों की रक्षा की। प्रदर्शन की इन तस्वीरों में शामिल लड़कों और लड़कियों की प्रतिबद्धता की सराहना करना चाहता हूं। वीडियो और तस्वीरों में लड़के लड़कियां आपस में घुलकर अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। मेरे लिहाज़ से यह सुंदर तस्वीर है। मुझे इन परीक्षार्थियों पर गर्व है। सलाम।




इस आंदोलन की अच्छी बात है कि सभी उत्तर प्रदेश के अलग-अलग ज़िलों से आए हैं और हाथ में तख़्ती बैनर लेकर आए हैं। इस वक्त में जब मीडिया की प्राथमिकता बदल गई है ये छात्र- छात्राएं अलग-अलग ज़िलों से आकर प्रदर्शन कर रहे हैं। सुखद बात यह भी है कि इस आंदोलन में लड़कियां भी अच्छी संख्या में आई हैं। शायद सभी पहली बार मिल रहे होंगे। लड़कियां भी आपस में धरना स्थल पर मिल रही होंगी। इनका कहना है कि सरकार ने जो पात्रता तय की है उसी के अनुरूप परीक्षा पास कर चुके हैं। जब सरकार ने फार्म निकाला तो परीक्षा की तारीख में मात्र में एक महीने का वक्त दिया। अब रिज़ल्ट आने में आठ महीने की देरी क्यों हो रही है।




अपने रिज़ल्ट की मांग को लेकर छात्रों ने लखनऊ स्थित एस सी ई आर टी के दफ्तर के बाहर प्रदर्शन चला। आठ महीने से ये छात्र परीक्षा के परिणाम का इंतज़ार कर रहे हैं। अदालत में आठ बार तारीख़ बढ़ चुकी है। सात सुनवाई में महाधिवक्ता गए ही नहीं। इसलिए सुनवाई नहीं होती है और तारीख़ बढ़ जाती है। शिक्षा मित्र कोर्ट गए और जीत गई। सरकार इस फैसले को लेकर डबल बेंच गई। शिक्षा मित्रों को पिछली नौकरी के कारण ग्रेस मार्क मिले हैं जिसके कारण नई परीक्षा में ज़्यादा अंक लाने वाले छात्र पिछड़ गए। इस कारण मामला अदालत में चला गया। धरने में शामिल छात्र कोर्ट से हार गए लेकिन अब वे चाहते हैं कि सुनवाई जल्दी हो और परिणाम आए। मार्च 2019 में सिंगल बेंच का फैसला आया था। इस परीक्षा के परीक्षार्थियों का समूह कहता है कि मार्च के आदेश से 110 नंबर लाने वाले छात्र बाहर हो जाएंगे। सरकार ने परीक्षा के बाद पैमाना बनाकर गलती की। उनकी यह बात ठीक लगती है। तो जो समझ आया कि इस परीक्षा के परीक्षार्थियों में दो समूह हैं। दोनों आमने सामने है। सरकार फैसले के ख़िलाफ़ डबल बेंच चली गई है। डबल बेंच की सुनवाई के लिए सरकार की तरफ से महाधिवक्ता उपस्थित नहीं हो रहे हैं। 19 सितंबर को सुनवाई है।




मीडिया ने इन छात्रों ने अपनी सीमा से बाहर कर दिया है। ये छात्र भी मीडिया के खेल को समझने लगे हैं। मीडिया को भरोसा है कि ये छात्र उसके हिन्दू मुस्लिम प्रोपेगैंडा के सवर्था गुलाम हैं तो वह ग़लत है। फिर भी मीडिया का कारोबार जनता के बग़ैर चल जाता है। तस्वीरों में छात्रों को देखकर भरोसा हुआ कि अभी सब नहीं मरे हैं न ग़ुलाम हुए हैं। भले ही इन लोकतांत्रिक प्रदर्शनों की चर्चा दिल्ली या कहीं और नहीं हैं मगर मैं इन्हें देखकर उत्साहित हूं। नागरिक बनने की प्रक्रिया छोटे से ही समूह में सही मगर जारी है। अंत में सरकार को जवाबदेह बनाने के लिए उसके सामने खड़ा होना ही पड़ता है। 69000 शिक्षक बहाली के छात्रों ने करके दिखा दिया है। कृपया मीडिया की भूमिका पर गंभीरता से विचार कीजिए जो शर्मनाक हो चुका है।




27 अगस्त को इन्होंने पहला धरना दिया था। 11 और 12 सितंबर को 36 घंटे का प्रदर्शन किया। इस परीक्षा में चार लाख से अधिक परीक्षार्थी रिज़ल्ट का इंतज़ार कर रहे हैं। संख्या के लिहाज़ से थोड़ा निराश हूं। काश सभी चार लाख शामिल होते। अगर कोई आर्थिक मजबूरी के कारण धरना में शामिल नहीं हो सका तो उसे छूट मिलनी चाहिए लेकिन जो लोग घर बैठकर स्वार्थ और चतुराई के कारण नहीं आए उन्हें समझना चाहिए कि उनके जैसे ही लोग हैं जो लोकतंत्र की आकांक्षा को कमज़ोर कर रहे हैं। वे घर बैठे लड्डू खा लेना चाहते हैं। फिर भी ऐसे स्वार्थी लोगों की परवाह न करते हुए चंद सौ लोगों ने जो बीड़ा उठाया है वह इस वक्त की सुंदर तस्वीर है। हो सकता है कि रिज़ल्ट आने पर धरना-प्रदर्शन में शामिल कुछ का चयन न भी हो लेकिन तब भी उन्होंने एक जायज़ हक़ की लड़ाई लड़ी है और यह लड़ाई जीवन भर काम आएगी। उनके भीतर का भय छंटा है।




उम्मीद है संघर्ष के दौरान लड़के-लड़कियों ने कुछ सीखा होगा। राज्य व्यवस्था की बेरूख़ी को महसूस किया होगा। जिन सरकारों को हम धर्म या झूठ के आधार पर चुन लेते हैं या सही समझ के आधार पर चुनने के बाद भी ठगे जाते हैं, उनके सामने खड़े होने का यही एकमात्र जायज़ रास्ता है। अहिंसा और धीरज का रास्ता। मुझे भरोसा है कि आपने प्रदर्शन के दौरान अपने अकेलेपन को महसूस किया होगा। आपके भीतर झूठ पर आधारित अंध राष्ट्रवाद भरा गया। सांप्रदायिकता ने आपको खोखला कर दिया है। वो अब भी आप सभी के भीतर है। आपने अभी तक उसे अपने कमरे से बाहर नहीं निकाला है। इसलिए नागरिकता और लोकतांत्रिकता के इस बेजोड़ प्रदर्शन के बाद भी राज्य का चेहरा नहीं बदलेगा। क्योंकि आप ही नहीं बदले।




किसी भी प्रदर्शन की प्रासंगिकता सिर्फ परिणाम तक नहीं सीमित नहीं होनी चाहिए। अगर आप और सरकार की न बदले तो वह यातना दूसरे परीक्षार्थियों पर जारी रहेगी। काश अच्छा होता कि आपके प्रदर्शन में दूसरी परीक्षाओं के पीड़ित भी शामिल होते या आप भी उनके छोटे प्रदर्शन में शामिल होकर बड़ा कर देते और राज्य के सामने एक सवाल रखते कि आखिर कब हमें पारदर्शी और ईमानदार परीक्षा व्यवस्था मिलेगी? आपके भीतर का स्वार्थ राजनेताओं के काम आ रहा है। आपको एक दिन इस अंध राष्ट्रवाद के खेल को समझना ही होगा।




आप नौजवानों से मुझे कोई शिकायत नहीं। उम्मीद भी नहीं है। मैं इसका कारण जानता हूं। आपके साथ धोखा हुआ। जौनपुर, संभल या गाज़ीपुर या उन्नाव हो, वहां के स्कूलों और कालेजों को घटिया बना दिया गया। क्लास में अच्छे शिक्षक नहीं रहे। आपका छात्र जीवन बेकार गया। काश आपको अच्छी और गुणवत्तावाली शिक्षा मिली होती तो आप और लायक होते और देश और सुंदर बनता। इन हालातों में बदलाव के कोई आसार नहीं है। बस एक झूठी उम्मीद पालने की ग़लती करूंगा। आपमें से जब कोई शिक्षक बनेगा तो अच्छा और ईमानदार शिक्षक बनेगा। ख़ुद भी पढ़ेगा और छात्रों के आंगन को ज्ञान से भर देगा। ऐसा होगा नहीं फिर भी उम्मीद करने में क्या जाता है। फिलहाल प्रदर्शनों के प्रति आपकी प्रतिबद्धता के लिए बधाई देना चाहूंगा। आपने बेज़ान और डरपोक होते इस लोकतंत्र में जान फूंक दी है।


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