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बीएड प्रवेश में निजी संस्थानों की फीस तय न होने से बढ़ सकती हैं छात्रों की मुसीबतें

निजी संस्थानों के लिए चालू शिक्षण सत्र में बीएड की फीस निर्धारित नहीं होने से छात्रों की मुसीबतें बढ़ सकती हैं। फीस का निर्धारण न होने से निजी संस्थानों के विद्यार्थियों को राज्य विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम की न्यूनतम फीस के बराबर भुगतान करना होगा।


राज्य विश्वविद्यालयों और निजी संस्थानों की फीस में भारी अंतर है। निजी बीएड शिक्षण संस्थानों के लिए वर्ष 2016-17 से 2018-19 तक प्रथम वर्ष में 51,250 रुपये और द्वितीय वर्ष में 30,000 रुपये फीस थी। इसके बाद 2019-20 के लिए भी इसी दर से शुल्क निर्धारित किया गया। चालू सत्र में निजी संस्थानों के लिए सक्षम स्तर से बीएड की फीस निर्धारित नहीं की गई है।
समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों का कहना है कि प्रदेश सरकार अनुसूचित जाति व जनजाति के विद्यार्थियों के लिए पूरी फीस की भरपाई करती है, जबकि बीएड में अन्य वर्गों के लिए अधिकतम 50 हजार रुपये की प्रतिपूर्ति की कैपिंग लगाई गई है। इस साल कोरोना संकट के कारण ऑनलाइन क्लासेज ही चल रही हैं। इसलिए प्रदेश सरकार शुल्क भरपाई में कटौती करने पर भी विचार कर रही है। इसके पीछे तर्क है कि ऑनलाइन क्लासेज से संस्थानों का व्ययभार कम हुआ है।
सक्षम स्तर से बीएड में ली जाने वाली फीस का निर्धारण जरूरी
अधिकारियों का कहना है कि 2 अक्तूबर को शुल्क प्रतिपूर्ति की जानी है। इसलिए सक्षम स्तर से बीएड में ली जाने वाली फीस का निर्धारण जरूरी है। चाहें इसकी राशि कम या ज्यादा हो, क्योंकि किसी भी स्थिति में यह राज्य विश्वविद्यालय में ली जाने वाली फीस से अधिक ही निर्धारित होगी।

अनुसूचित जाति की छात्रवृत्ति एवं शुल्क प्रतिपूर्ति मद का एक चौथाई बजट बीएड पाठ्यक्रम में दाखिला लेने वाले छात्रों पर व्यय होता है। कुल दो हजार करोड़ रुपये के सालाना बजट में से करीब 450 करोड़ रुपये बीएड के विद्यार्थियों को दिया जाता है। सामान्य वर्ग में आवेदन करने वाले पात्र विद्यार्थियों की संख्या करीब 25000 रहती है।

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