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नई शिक्षा नीति में बोर्ड परीक्षा खत्म करने का था प्रस्ताव

नई शिक्षा नीति के लिए विख्यात वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में गठित ड्राफ्टिंग कमेटी ने बोर्ड की 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं खत्म करने का प्रस्ताव दिया था। एक बार में परीक्षा लेने की बजाय सेमेस्टर परीक्षाओं के माध्यम से बच्चों का मूल्यांकन करने का सुझाव था।

ड्राफ्ट के अनुसार सेकेंडरी स्कूल के दौरान प्रत्येक बच्चे को गणित, विज्ञान व व्यावसायिक विषयों में दो-दो सेमेस्टर की बोर्ड परीक्षाएं, भारतीय इतिहास, विश्व इतिहास, वर्तमान भारत के ज्ञान, नीतिशास्त्र व दर्शन, अर्थशास्त्र, वाणिज्य व व्यापार, डिजिटल लिटरेसी / कम्प्युटेशनल थिंकिंग, कला व शारीरिक शिक्षा में एक-एक बोर्ड परीक्षाएं कराने का प्रस्ताव था। कक्षा 9 से 12 तक के विद्यार्थियों से कुल 24 विषय में बोर्ड परीक्षा देने की अपेक्षा थी।

चार साल में आठ सेमेस्टर और प्रत्येक सेमेस्टर में औसतन तीन परीक्षाएं । ये परीक्षाएं स्कूल में होने वाली वार्षिक परीक्षाओं के स्थान पर कराए जाने का सुझाव था ताकि बच्चों पर अतिरिक्त बोझ न आता। हालांकि सरकार ने इन सुझावों को नहीं माना। माध्यमिक शिक्षक संघ ठकुराई गुट के प्रदेश महामंत्री लालमणि द्विवेदी का सुझाव है कि हाईस्कूल की बोर्ड परीक्षा को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया जाना चाहिए तथा विद्यालय स्तर पर ही उनका सतत मूल्यांकन होना चाहिए। विद्यार्थियों के शैक्षिक आकलन की व्यवस्था में

गुणात्मक सुधार के साथ केवल इंटर की परीक्षाएं आयोजित की जानी चाहिए।
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हाईस्कूल के बच्चों के व्यापक हित में प्रोन्नत करने का निर्णय लिया गया है। बच्चों का स्वास्थ्य और सुरक्षा सर्वोपरि है। बच्चों को भी परेशान नहीं होना चाहिए, उन्होंने जो पढ़ाई की है वह व्यर्थ नहीं गई है, आगे की कक्षा और भविष्य में काम आएगी।
दिव्यकांत शुक्ल, सचिव यूपी बोर्ड

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