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मायके में रहते शिक्षामित्र बनीं और अब ससुराल नहीं जा पा रहीं...शिक्षामित्र किसे सुनाएं दर्द

आजमगढ़, परिषदीय विद्यालयों में शिक्षकों के साथ बच्चों को निपुण बनाने में जुटे शिक्षामित्र समय से मानदेय न मिलने से परेशान हैं। उनका कहना है कि स्थानीय अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही के चलते अक्सर उन्हें देर से मानदेय मिलता है। शासन की स्थानांतरण नीति का स्थानीय अफसर पालन नहीं करते हैं। इसके चलते शिक्षामित्रों का स्थानांतरण नहीं हो रहा। सबसे ज्यादा दिक्कत उन महिलाओं को है जो मायके में रहते शिक्षामित्र बनीं और अब ससुराल नहीं जा पा रहीं। विभागीय अधिकारी उनकी मन:स्थिति से जानबूझ कर अंजान बने हुए हैं। एक नजर


  • 2700 शिक्षामित्र वर्तमान में जनपद के 22 ब्लाकों और नगर क्षेत्र में स्थित परिषदीय विद्यालयों में बच्चों को दे रहे शिक्षा
  • 1724 प्राइमरी स्कूलों में पहली से पांचवीं तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए की गई है तैनाती, दस हजार रुपये है मानदेय
  • 700 के करीब शिक्षामित्र समायोजन रद्द होने पर परीक्षा देकर जनपद में सहायक अध्यापक के रूप में पा चुके तैनाती
कलक्ट्रेट के पास कुंवर सिंह उद्यान में ‘हिन्दुस्तान के साथ बातचीत में शिक्षामित्र अशोक कुमार यादव ने बताया कि बेसिक शिक्षा विभाग के महानिदेशक ने बीएसए को शिक्षामित्रों का मानदेय समय से भेजने के संबंध में स्पष्ट निर्देश दिया है। जनपद के 22 ब्लाक और एक नगर क्षेत्र में 27 सौ से ज्यादा शिक्षामित्र हैं। उनके मानदेय भुगतान में स्थानीय स्तर पर लापरवाही की रही है। किसी प्रकार से वे दस हजार रुपये के मासिक मानदेय पर परिवार का गुजर-बसर करते हैं, लेकिन इसके भी मिलने का कोई समय तय नहीं है। स्वतंत्र सिंह ने बताया कि दस हजार रुपये बच्चों की पढ़ाई, परिवार के इलाज के लिए ऊंट के मुंह में जीरा के समान है। जबकि कई वर्षों से वे अपना पूरा समय विद्यालय में देने के बाद कोई अन्य काम नहीं कर पाते। तब भी उम्मीद रहती है कि मानदेय समय से मिले, लेकिन अधिकारियों और बाबुओं के चलते इसमें अनावश्यक देर की जाती है।

महानिदेशक का आदेश हवा में

शिक्षामित्रों के संगठन के जिलाध्यक्ष देवसी यादव और रंजू सिंह ने बताया कि एक तो उन्हें कम मानदेय मिलता है। उसे भी समय पर देने में हीलाहवाली की जाती है। बेसिक शिक्षा विभाग के महानिदेशक का लिखित आदेश है कि शिक्षामित्रों की वेतनावली प्रत्येक माह 30 या 31 तारीख को जमा कर दी जाए। अगले माह के शुरू में एक से पांच तारीख तक बीआरसी से जिला मुख्यालय स्थित बीएसए कार्यालय तक वेतनावली पहुंच जानी चाहिए। पांच से दस तारीख के बीच में मानदेय मिल जाना चाहिए, लेकिन इंतजार करते-करते माह की आखिरी तारीख आ जाती है। मानदेय मिलने में देरी के मामले में बीआरसी पर बीएसए का कोई अंकुश नहीं रहता। जबकि बीएसए को महानिदेशक के आदेश का सख्ती से पालन कराना चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि वर्ष 2017 से मानदेय में बढ़ोतरी नहीं हुई है, जबकि महंगाई बहुत ज्यादा बढ़ गई।

कड़ी मेहनत के बाद भी सम्मान न प्रमाणपत्र

शिक्षामित्र कृष्णमोहन उपाध्याय ने बताया कि वर्ष 2009 से शिक्षामित्रों की भर्ती रोक दी गई थी। तब निर्णय लिया गया कि इन लोगों को प्रशिक्षित कर समायोजित किया जाएगा। 23 अक्टूबर 2014 को शिक्षामित्रों का समायोजन हुआ था। सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बाद समायोजन 25 जुलाई 2017 तक ही रहा। इसके बाद दुर्दिन शुरू हो गए। तब से शिक्षामित्र अवसाद में जीने के लिए मजबूर हैं। घुटन के बीच बच्चों को निपुण बनाने में जुटे हैं। कुसुमलता ने बताया कि अधिकारियों की मंशा के अनुरूप बच्चों को निपुण बनाते हैं, लेकिन इसका कोई सम्मान और पुरस्कार नहीं मिलता जबकि सहायक अध्यापकों के सम्मान और प्रमाणपत्र में कोई कमी नहीं होती।

न्यूनतम मानदेय की मांग अधूरी

अनिल कुमार यादव ने बताया कि विद्यालय में समान कार्य का समान वेतन नहीं मिलता। शिक्षामित्रों को प्रशिक्षित वेतनमान भी नहीं दिया जा रहा है। सुप्रीमकोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार निर्धारित न्यूनतम मानदेय 24000 रुपये प्रतिमाह होना चाहिए। इस पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है। हीरालाल सरोज ने कहा कि सरकार को आगमी बजट सत्र में शिक्षामित्रों के लिए कुछ पैकेज की घोषणा करनी चाहिए, ताकि उनकी आर्थिक समस्या दूर हो। वे गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं।

बोर्ड परीक्षा से हटाया, बीएलओ बना रहे

रामू निषाद और हरिलाल मौर्य ने बताया कि शिक्षामित्र परिषदीय विद्यालयों में सहायक अध्यापक के बराबर काम करते हैं। सहायक अध्यापकों की तरह चुनाव ड्यूटी में वर्ष 2019 तक काम किया, लेकिन उन्हें चुनाव कार्य से अलग कर दिया गया। यूपी बोर्ड परीक्षा की ड्यूटी से भी हटा दिया गया। अब बीएलओ का काम कराया जा रहा है। इसमें आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों के साथ ड्यूटी लगाई जाती है। कठिन मेहनत के बाद तहसील से एक माह में पांच सौ रुपये का मानदेय मिलता है।

स्थानांतरण के लिए परेशान

रीता सिंह और राजनाथ शर्मा ने बताया कि शिक्षामित्र बनने के दौरान अविवाहित रहीं महिलाएं शादी के बाद ससुराल नहीं जा पा रही हैं। कुछ प्रतिदिन 25 से 30 किमी की दूरी तय कर ससुराल से आ-जा रही हैं। जिनकी ससुराल से विद्यालय की दूरी ज्यादा है, उन्हें मायके से ही ड्यूटी करनी पड़ रही है। महिला सहायक अध्यापिकाओं के लिए सरकार ने स्थानांतरण नीति लागू कर दी, लेकिन महिला शिक्षामित्रों की दिक्कतों पर ध्यान नहीं गया। इन्हें प्रसूति अवकाश और सीसीएल की भी सुविधा नहीं है। शिक्षामित्रों को पहले सालभर में 14 सीएल मिलता था। उसे घटाकर 11 कर दिया गया है।

जनवरी-जून में आधा मानदेय

इसरावती और हरिकेश यादव ने बताया कि विपरीत मौसम में परिषदीय विद्यालयों में बच्चों के साथ शिक्षकों को भी 30 दिन का अवकाश मिलता है। जनवरी में 1 से 15 जनवरी, 15 दिन का शीतकालीन और 20 मई से ग्रीष्मकालीन अवकाश का नियम है। कुल 30 दिनों का अवकाश होता है। 30 दिनों के अवकाश के दौरान सहायक अध्यापकों के वेतन में कटौती नहीं होती जबकि शिक्षामित्रों का मानदेय काट दिया जाता है। जनवरी और जून में 5-5 हजार रुपये ही मानदेय मिल पाता है। गांव के ही होने के नाते ज्यादातर शिक्षामित्र ही 25 वर्षों से अपने विद्यालयों के गेट का ताला खोल और बंद कर रहे हैं।

किसे सुनाएं दर्द

शिक्षामित्र अवसाद में हैं। उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा। चारो ओर से निराशा मिल रही है।

-कृष्णमोहन उपाध्याय


तीन दशक से बच्चों को पढ़ाने के लिए मेहनत कर रहे हैं। समान वेतन न मिलने से निराशा होती है।

-देवसी यादव

इंटर पास बीटीसी प्रशिक्षित शिक्षकों से हमारी योग्यता बेहतर है। फिर भी हमें बेगाना समझा जाता है।

-अनिल यादव

यूपी विधानसभा का 18 फरवरी से बजट सत्र शुरू होने वाला है। शिक्षामित्रों को मानदेय में वृद्धि की आस है।

-हीरालाल सरोज

शिक्षामित्रों को समय से मानदेय नहीं दिया जाता। शिक्षकों के बाद मिलता है। अधिकारी ध्यान नहीं देते।

-अशोक कुमार यादव

दस हजार रुपये में परिवार का भरण-पोषण मुश्किल है। बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है।

-स्वतंत्र सिंह

हमसे बीएलओ का काम कराया जाता है। चुनाव आने पर ड्यूटी नहीं लगाई जाती। भेदभाव किया जाता है।

-रामू निषाद


मायके में नौकरी कर रहीं महिलाओं को ससुराल के विद्यालयों में स्थानांतरित करने का आदेश है। उसका पालन नहीं हो रहा है।

-रीता सिंह


-हमें पहले 14 सीएल मिलता था। अब घटाकर 11 कर दिया गया है। यह अन्याय है।

-रंजू सिंह


-बच्चों की शिक्षा और शादी के लिए नौकरी के आधार पर बैंक लोन की भी सुविधा नहीं है।

-कुसुमलता

- शिक्षामित्रों को शिक्षकों की तरह सम्मान नहीं मिलता। खेल आदि कार्यक्रमों की जानकारी नहीं दी जाती है।

-इसरावती देवी

-शिक्षामित्र समय से स्कूल का ताला खोलते हैं। फिर भी ग्रीष्मकालीन छुट्टी का पैसा काट लिया जाता है।

-हरिकेश यादव




सुझाव :
  • शिक्षकों के साथ ही हर महीने मानदेय का भुगतान किया जाए। ताकि, किसी से मदद की गुहार न लगानी पड़े।
  • मायके में रहकर नौकरी कर रहीं महिलाओं का स्थानांतरण किया जाए ताकि वे ससुराल में सुकून की जिंदगी गुजार सकें।
  • राष्ट्रीय कार्यक्रमों में भागीदारी के लिए शिक्षामित्रों की अनदेखी न हो। शिक्षकों के साथ उन्हें भी सूचना से अवगत कराया जाए।
  • प्रदेश सरकार मानदेय में बढ़ोतरी करे ताकि शिक्षामित्रों को परिवार का भरण-पोषण करने में कुछ राहत मिले।
  • पूर्व में समायोजित शिक्षकों की उनके ग्राम पंचायत में तैनाती की जाए। इससे उन्हें भागदौड़ से राहत मिलेगी।


शिकायतें :
  • नौनिहालों का भविष्य संवारते हैं। इसके बाद भी भेदभाव होता है। मान-सम्मान नहीं दिया जाता है।
  • संघर्ष में पूरा जीवन गुजर गया। अपने बच्चों को उच्च शिक्षा नहीं दिला पाए। बुढ़ापे की चिंता अलग सता रही है।
  • स्थानांतरण आदेश का पालन नहीं किया जा रहा है। मजबूरी में महिलाओं को मायके में रहकर नौकरी करनी पड़ रही है।
  • मानदेय देने में विभाग लापरवाही बरतता है। शिक्षकों के साथ मानदेय का भुगतान नहीं किया जाता।
  • मतदाता सूची पुनरीक्षण में बीएलओ की ड्यूटी लगाई जाती है, मगर चुनाव में बाहर कर दिया जाता है।
बोले जिम्मेदार

स्थानांतरण के संबंध में शासनादेश नहीं

महिला शिक्षामित्रों के स्थानांतरण के संबंध में अभी शासन से स्पष्ट आदेश नहीं है। उच्चाधिकारियों को महिला शिक्षामित्रों की समस्याओं की जानकारी दी जाएगी। शासन के निर्देशानुसार कार्य होगा। शिक्षामित्रों का मानदेय समय पर दिलाने का प्रयास किया जाएगा।


राजीव पाठक, बीएसए।

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