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श्रमिकों के लिए विशेष आएगी पेंशन योजना

नई दिल्ली, देशभर में विभिन्न तरह के निर्माण कार्यों में लगे करीब छह करोड़ श्रमिकों को केंद्र सरकार बड़ी सौगात देने की तैयारी में है। वह सभी राज्यों के लिए नई एकीकृत पेंशन योजना लाने की दिशा में काम कर रही है।


इसमें श्रमिकों को कोई अंशदान नहीं देना होगा, बल्कि निर्माण कार्यों पर लिए जाने वाले उपकर (सेस) की धनराशि का इस्तेमाल किया जाएगा। यह योजना गिग वर्क की पेंशन योजना के ही समान होगी। सूत्रों का कहना है कि श्रम एवं रोजगार मंत्रालय पेंशन योजना के प्रारूप पर काम कर रहा है।

इस योजना का असल लाभ राज्य सरकारों के माध्यम से श्रमिकों को मिलना है, इसलिए योजना में ऐसी व्यवस्था की जाएगी कि राज्य आसानी से जुड़कर अपने यहां काम कर रहे श्रमिकों की पेंशन में योगदान कर पाएं। मुख्य तौर पर बिल्डिंग और अन्य तरह के निर्माण कार्य में लगे श्रमिकों को योजना का लाभ मिलेगा। इसके लिए राज्यवार पंजीकरण की व्यवस्था होगी।

बीते काफी वर्षों से श्रमिक संगठन आरोप लगाते आए हैं कि ज्यादातर राज्य सरकारें और केंद्र शासित प्रदेश भवन और अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम को लागू नहीं कर रहे हैं। राज्यों के श्रमिक कल्याण बोर्डों के पास पड़ी धनराशि को राज्य के खजाने में ले जाने का प्रयास किया जा रहा है।

पेंशन बंद नहीं होगी

अगर कोई श्रमिक एक राज्य या जिले को छोड़कर दूसरी जगह जाएगा तो उसका पेंशन योगदान बंद नहीं होगी। इसलिए स्थान परिवर्तित होने पर सिर्फ उसे जानकारी देनी होगी। योजना से लाभांवित होने वाले श्रमिकों को पेंशन से जुड़ा एक यूनिक कोड दिया जाएगा, जिससे स्थान परिवर्तन होने पर भी पेंशन योगदान उनके खाते में जाएगा।

कोई ठोस योजना नहीं

केंद्र का मानना है कि राज्य सरकारों के पास रिजर्व फंड लगातार बढ़ रहा है। श्रमिकों के कल्याण कार्य पर खर्च करने के लिए संचालित योजनाओं में भी एकरुपता नहीं है। हर राज्य की अलग-अलग योजना है, लेकिन कोई भी ऐसा ठोस योजना नहीं है, जो उनके बेहतर भविष्य पर केंद्रित हो। इसलिए केंद्र सरकार ने योजना बनाई है कि एक एकीकृत पेंशन स्कीम बनाकर राज्यों को जोड़ा जाए।

राज्यों के पास रिजर्व फंड

राज्य सरकार निर्माण कार्य पर एक से दो प्रतिशत के बीच सेस यानी उपकर वसूलती हैं। यह उपकर श्रमिकों से जुड़े कल्याण कार्यों की पूर्ति के लिए लगाया जाता है। वर्ष 2005 के बाद से 1.20 लाख करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि जुटाई गई हैं। इसमें से 70,700 करोड़ श्रम कल्याण बोर्डों के पास है, जिसका इस्तेमाल नहीं हो रहा है।


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