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स्कूली बच्चों की याचिका पर हाईकोर्ट ने मांगी रिपोर्ट ● याची बोले-विलय नीति शिक्षा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने प्राइमरी स्कूलों का विलय करने के विरुद्ध दाखिल याचिकाओं में सुनवायी करते हुए, राज्य सरकार से पूछा है कि क्या विलय का निर्णय लेने से पहले कोई सर्वेक्षण कराया गया था। न्यायालय ने कहा है कि यदि सर्वे हुआ है तो उसकी रिपोर्ट प्रस्तुत की जाय। साथ ही न्यायालय ने सरकार को पूरी तैयारी व तथ्यों के साथ पक्ष रखने को कहा है। शुक्रवार को भी मामले में सुनवायी जारी रहेगी। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि सुनवायी शुक्रवार के आगे नहीं टाली जाएगी।

यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने सीतापुर की कृष्णा कुमारी समेत 51 स्कूली बच्चों व अन्य रिट याचिकाओं पर एक साथ सुनवायी करते हुए पारित किया। याचिका बुधवार को भी सुनवायी के लिए पेश हुई थी जिस पर सरकारी अधिवक्ताओं ने बहस के लिए गुरुवार तक का समय मांगा था। याचियों की ओर से पेश अधिवक्ताओं एलपी मिश्रा व गौरव मेहरेात्रा ने दलील दी कि 16 जून का सरकार का निर्णय मनमाना व अवैध है, संविधान के अनुच्छेद 21 ए के तहत प्रदत्त शिक्षा के मौलिक अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 2009 में बच्चों के निःशुल्क शिक्षा व अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम पारित किया। जिसके तहत 6 से 14 साल तक के बच्चों के लिए शिक्षा अनिवार्य की गयी। इस अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने अनिवार्य शिक्षा अधिनियम के प्रावधानों के तहत प्रदेश में बड़ी संख्या में प्राइमरी स्कूलों की स्थापना की। कहा गया कि अधिनियम की मंशा के तहत शिक्षा के संवैधानिक अधिकार को प्रदान करने के लिए प्रत्येक एक किमी. के दायरे में 300 की जनसंख्या पर स्कूलों की स्थापना की गयी है और अब सरकार एक प्रशासनिक आदेश से उक्त स्कूलों को विलय करके बड़ी संख्या में इन्हें समाप्त किया जा रहा है। तर्क दिया गया कि राज्य सरकार का यह कृत्य संविधान के अनुच्छेद 21ए तथा शिक्षा का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के खिलाफ है।

याचिका का राज्य सरकार की ओर से विरेाध करते हुए कहा गया कि सरकार ने विलय का निर्णय इसलिए लिया है क्योंकि कई स्कूलों में छात्रों की संख्या बहुत कम है और करीब 56 स्कूलों में तो कोई छात्र ही नहीं है।

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