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एपीएस भर्ती 2010: आयोग अफसरों के खिलाफ साढ़े चार साल बाद जांच की अनुमति

अपर निजी सचिव (एपीएस) भर्ती 2010 में धांधली की जांच में सहयोग न मिलने पर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के अल्टीमेटम का असर दिखने लगा है। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने एपीएस भर्ती 2010 की सीबीआई जांच में संदिग्ध रूप से संलिप्त पाए गए अपने अफसरों की जांच करने की अनुमति साढ़े चार साल के बाद दे दी है। इसके फलस्वरूप आने वाले दिनों में सीबीआई जांच में तेजी की उम्मीद जताई जा रही है।


सीबीआई के निदेशक प्रवीण सूद ने 26 मई को यूपी के मुख्य सचिव को भेजे पत्र में दो टूक कहा था कि यदि 30 दिनों में लोक सेवा आयोग की ओर से कोई ठोस प्रगति नहीं की जाती है, तो सीबीआई को इन जांचों और पूछताछों को अपर्याप्त सहयोग के कारण समय पूर्व बंद करने का निर्णय लेना पड़ सकता है। सीबीआई का पत्र मिलने के बाद आयोग ने 25 जून को सीबीआई को जांच की अनुमति भेज दी।

आयोग की तरफ से उक्त स्वीकृति जारी करने का मामला गोपनीय रखा गया था, लेकिन सीबीआई जांच में दोषी मिले अफसरों की ओर से हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में आयोग की ओर से दाखिल काउंटर एफिडेविट में इस बात का खुलासा किया गया है। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के मीडिया प्रभारी प्रशांत पांडेय ने मांग की है कि जांच के दायरे में शामिल अभियुक्तों के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज होने के साथ ही गिरफ्तारी होनी चाहिए जिससे इस भ्रष्टाचार में शामिल सभी चेहरे बेनकाब हो सकें।

सरकार ने 2018 में सीबीआई जांच की संस्तुति की थी

उत्तर प्रदेश सरकार ने चार सितम्बर 2018 को उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की एपीएस भर्ती 2010 में बरती गई अनियमितताओं की सीबीआई से जांच कराने की संस्तुति की थी। सीबीआई की प्रारंभिक जांच में आयोग में कार्यरत कुछ अफसरों के विरूद्व भर्ती में अनियमितता बरतने के पुख्ता प्रमाण मिले थे।

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