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जिस स्कूल के लिए चाहिए पुरस्कार, उसमें अपने बच्चे नहीं पढ़ाते गुरुजी

लखनऊः बेसिक शिक्षा विभाग परिषदीय विद्यालयों की गुणवत्ता और आधारभूत ढांचे को सुधारने के लिए लगातार योजनाएं और नवाचार लागू कर रहा है, लेकिन इन स्कूलों में पढ़ाने वाले ज्यादातर शिक्षक खुद ही इन पर पूरी तरह भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। राज्य शिक्षक पुरस्कार के लिए आए आवेदन करने वाले शिक्षकों के साक्षात्कार में यह सच सामने आया है। साक्षात्कार में 90 प्रतिशत शिक्षकों ने माना कि जिस स्कूल में नवाचार के लिए वह पुरस्कार चाहते हैं, उस स्कूल में वह अपने बच्चों को नहीं पढ़ाते।


राज्य शिक्षक पुरस्कार के लिए इस बार प्रदेशभर से 265 बेसिक शिक्षकों ने आवेदन किया है। सात दिनों तक चले साक्षात्कार में इन शिक्षकों ने अपने नवाचार, नामांकन बढ़ाने के प्रयास और अन्य शैक्षणिक गतिविधियों पर प्रजेंटेशन दिया। विशेषज्ञों ने प्रजेंटेशन के आधार पर साक्षात्कार लेकर चयन की प्रक्रिया पूरी की। साक्षात्कार के दौरान उनसे एक सवाल यह भी पूछा गया क्या आप अपने बच्चों को उसी स्कूल में पढ़ाते हैं, जहां आप कार्यरत हैं? इस पर अधिकांश शिक्षकों ने साफ कहा कि उनके बच्चे निजी विद्यालयों में पढ़ते हैं। केवल 26 शिक्षकों ने अपने विद्यालय पर पूर्ण विश्वास जताते हुए बताया कि वे अपने बच्चों को भी वहीं शिक्षा दिला रहे हैं। यानी, 265 में से महज 10 प्रतिशत शिक्षक ही अपने ही परिषदीय विद्यालय में पढ़ाने के साथ अपने बच्चों को भी वही पढ़ाते हैं, जबकि बाकी 90 प्रतिशत शिक्षक इस पर भरोसा नहीं करते। जानकार मानते हैं कि यह स्थिति कई सवाल खड़े करती है। जब शिक्षक खुद अपने बच्चों के लिए इन स्कूलों को उपयुक्त नहीं मानते, तो वे दूसरों के बच्चों को पढ़ाकर पुरस्कार पाने के हकदार कैसे हो सकते हैं? राज्य शिक्षक पुरस्कार में हर जिले से एक शिक्षक का चयन किया जाना है। केवल वही शिक्षक चुने जाएंगे जो निर्धारित मानकों पर खरे उतरेंगे। अगर किसी जिले से योग्य शिक्षक नहीं मिला, तो वहां पुरस्कार नहीं दिया जाएगा। विभाग ने साक्षात्कार के आधार पर शार्टलिस्ट किए गए शिक्षकों की सूची शासन को भेज दी है।

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