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रिंकू सिंह को एक महीने में दूसरा झटका, पहले बीएसए वाली फाइल रुकी, अब चुनाव आयोग के आइकन नहीं

क्रिकेटर रिंकू सिंह को एक महीने में दूसरा झटका लगा है। पहले बीएसए बनने के लिए चल रही प्रक्रिया रुक गई। अब चुनाव आयोग ने उन्हें मतदाता जागरूकता अभियान से हटा दिया है। चुनाव आयोग ने उन्हें मतदाता शिक्षा एवं निर्वाचन सहभागिता कार्यक्रम का आईकन नामित किया था। समाजवादी पार्टी की सांसद प्रिया सरोज से सगाई के कारण चुनाव आयोग ने शुक्रवार को उन्हें अपने कार्यक्रम से अलग करने का फैसला किया। हालांकि बीएसए बनाने के लिए फाइल रोके जाने के पीछे रिंकू सिंह की शैक्षिक योग्यता को कारण बताया गया था। पिछले दिनों रिंकू सिंह की फाइल सीएम योगी के सामने रखी गई थी। उसके बाद फाइल रोक दी गई है।


दरअसल खेलों के लिए सुविधाओं के विकास और खिलाड़ियों के प्रोत्साहन को प्रदेश सरकार प्रतिबद्ध है। विगत आठ सालों में एक तरफ ग्रामीण स्तर तक स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास हुआ है तो दूसरी तरफ पदक विजेता खिलाड़ियों को सम्मानजनक पुरस्कार राशि देने के साथ उन्हें सरकारी नौकरी की सुविधा दी जा रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलों के माध्यम से देश-प्रदेश का मान बढ़ाने वाले खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी देने के मामले में उत्तर प्रदेश देश का अग्रणी राज्य बना हुई है।

इसी क्रम में एक माह पहले पूर्व मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने 11 खिलाड़ियों को विभिन्न विभागों में नौकरी ऑफर किया था। इसमें रिंकू सिंह को बेसिक शिक्षा अधिकारी के पद पर जॉइनिंग करने की स्वीकृति दी गई थी। इसके बाद रिंकू सिंह से तमाम दस्तावेज मांगे गए थे। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि रिंकू सिंह की फाइल मुख्यमंत्री के समक्ष रखी गई थी, पर शैक्षिक योग्यता न होने से रोक दी गई है।

बेसिक शिक्षा निदेशक प्रताप सिंह बघेल का कहना है कि रिंकू सिंह से उनकी शैक्षिक योग्यता के डॉक्यूमेंट प्रस्तुत करने के लिए पत्र भेजा गया था। इसके बाद पूरी फाइल मुख्यमंत्री को संस्तुति के लिए भेजी गई थी। लेकिन शैक्षिक योग्यता की कमी के चलते फाइल रोक दी गई। उनका कहना है कि अभी उनके नौकरी की प्रक्रिया को फिलहाल स्थगित कर दिया गया है। आगे जो भी निर्देश होंगे, उससे अवगत कराया जाएगा।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा विभाग के नियमों के अनुसार बीएसए पद पर तैनाती के लिए अभ्यर्थी को पोस्ट ग्रेजुएट होना अनिवार्य है। रिंकू सिंह केवल आठवीं पास है। यदि इस पद पर नियुक्ति मिल भी जाती तो उन्हें सात साल के अंदर पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री हासिल करनी पड़ती। पर उनकी मौजूदा शैक्षिक योग्यता और सरकार द्वारा तय समय अवधि की सीमा में योग्यता पूरी करना संभव नहीं दिखता है। यही वजह है कि उनकी नियुक्ति को फिलहाल रोक दी गई है।

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