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टीईटी:अनिवार्यता के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे

प्रयागराज। कक्षा एक से आठ तक के बच्चों को पढ़ा रहे शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास करने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के एक नवंबर के आदेश के बाद से देशभर के शिक्षक असहज हैं। इस मामले में दो महीने के अंदर उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों ने सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल कर नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) 2009 लागू होने से पूर्व नियुक्त शिक्षकों को टीईटी से मुक्त रखने की गुहार लगाई है।


उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, केरल, मेघालय और उत्तराखंड सरकारों ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं में आरटीई एक्ट का प्रभाव प्रत्येक राज्य की अधिसूचना तिथि से मानने का अनुरोध किया है। 23 अगस्त 2010 से पूर्व विज्ञापित भर्तियां राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) अधिसूचना के अनुसार वैध मानी जाएं। पहले से कार्यरत शिक्षकों पर टीईटी को लागू करना संविधान के विरुद्ध है।

सर्वोच्च न्यायालय ने सेवा में बने रहने और पदोन्नति के लिए सभी शिक्षकों के लिए टीईटी को अनिवार्य माना है। सेवा में बने रहने के लिए दो वर्ष के अंदर टीईटी उत्तीर्ण करने के आदेश दिए हैं। पदोन्नति के लिए उस संवर्ग की टीईटी को अनिवार्य बताया है। केवल उन्हीं शिक्षकों को राहत दी है जिनकी पांच वर्ष से कम की सेवा बाकी है। हालांकि इनके लिए भी पदोन्नति में टीईटी अनिवार्य है। इस आदेश के बाद से ही देशभर के शिक्षक आंदोलित हैं और टीचर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया नाम से राष्ट्रीय स्तर पर संगठन का भी गठन किया है।

एक अप्रैल 2010 से पूरे देश में लागू हुआ आरटीई

पूरे देश में आरटीई एक अप्रैल 2010 को लागू हुई। यह 6 से 14 वर्ष तक के प्रत्येक बच्चे को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है। शिक्षक नियुक्ति से संबंधित योग्यता तय करने का अधिकार एनसीटीई को दिया गया है।

राज्यों ने अलग-अलग तिथियों पर किया लागू

उत्तर प्रदेश: 27 जुलाई 2011

तेलंगाना (तत्कालीन आंध्र प्रदेश): 29 जुलाई 2011

केरल: 28 अप्रैल 2011

मेघालय: 1 मई 2011

उत्तराखंड: 18 जुलाई 2011

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