व्यापक असर वाली है नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति: चूंकि केंद्र समेत ज्यादातर राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं इसलिए नई शिक्षा नीति आसानी से लागू हो सकती है - Get Primary ka Master Latest news by Updatemarts.com, Primary Ka Master news, Basic Shiksha News,

व्यापक असर वाली है नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति: चूंकि केंद्र समेत ज्यादातर राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं इसलिए नई शिक्षा नीति आसानी से लागू हो सकती है

एक लम्बे विचार विमर्श के बाद केंद्र ने नई शिक्षा नीति की घोषणा कर दी जो राजीव गांधी सरकार द्वारा 1986 में बनाई शिक्षा नीति की जगह लेगी। यह देश की शिक्षा व्यवस्था में व्यापक बदलाव लाते हुए 21वीं सदी के भारत की नींव रख सकती है। इसमें छह वर्ष से पहले ही बच्चों की शिक्षा शुरू कराने पर काफी जोर दिया गया है। बच्चों के दिमाग का 85 प्रतिशत हिस्सा छह वर्ष के पहले ही विकसित हो जाता है। इस उम्र में बच्चों को सिखाने पर ध्यान नहीं देने से उनकी सीखने की क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। तमाम शोध से साबित हुआ है कि बच्चों के पढ़ने की क्षमता उन्हें बचपन में मिले संतुलित आहार से प्रभावित होती है।


चूंकि गरीब परिवारों के बच्चों को संतुलित आहार नहीं मिल पाता इसलिए वे कुपोषण का शिकार हो जाते हैं। ऐसे बच्चे पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते। यूनिसेफ के प्रयास से अलग-अलग देशों में बच्चों के लिए पोषाहार और मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था लागू की गई है। भारत में भी इसे आंगनबाड़ी के माध्यम से बाल-पोषाहार और प्राथमिक विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन व्यवस्था के तौर पर शुरू किया गया है। नई शिक्षा नीति में अब बच्चों को भोजन के पहले पौष्टिक नाश्ता देने की भी बात है। बच्चों के मानसिक विकास के पहलुओं पर ध्यान देने की वजह से व्यवस्था में सुधार आने की संभावना है।

स्कूली शिक्षा में दूसरा बड़ा बदलाव साइंस, आर्ट्स और कॉमर्स के स्ट्रीम को समाप्त करना है। अब बच्चे 11-12वीं में अपनी पसंद का कोई भी विषय का चुन सकते हैं। एक अन्य अहम बदलाव यह हुआ है कि संगीत, खेलकूद जैसे विषय मुख्य विषय बना दिए गए हैं। इसके अलावा सरकार अब स्कूलों में योग्य शिक्षकों की कमी पूरी करने के लिए चार वर्षीय बीए+बीएड कोर्स शुरू करेगी।

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव शिक्षा को नियंत्रित करने वाली संस्थाओं को लेकर है। अब तक यूजीसी, एआइसीटीई जैसी संस्थाएं उच्च शिक्षा पर निगरानी रखती थीं, जिससे एक जैसे मामलों में उनके अलग-अलग निर्णयों की वजह से काफी दिक्कतें आ रही थीं। अब ऐसी संस्थाओं को समाप्त कर केवल एक राष्ट्रीय उच्च शिक्षा आयोग होगा। दूसरे बड़े बदलाव के तहत देशभर के विश्वविद्यालयों को ब्रिटेन की तर्ज पर शोध केंद्रित और शिक्षण केंद्रित विश्वविद्यालयों में विभाजित किया जाएगा। साथ ही तमाम डिग्री कॉलेजों को भी स्वायत्तता दी जाएगी। अगर छोटे शहरों के पुराने डिग्री कॉलेजों को स्वायत्तता मिलती है तो वहां भी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा। सभी डिग्री कॉलेजों पर विवि की निगरानी रखने की नीति का परिणाम यह हुआ कि अच्छे- खासे चल रहे डिग्री कॉलेज भी नए-नए खुले विवि की प्रशासनिक निगरानी में आ गए। नए विवि खुद ठीक से खड़े नहीं हो पाए और उन्होंने पुराने डिग्री कॉलेजों को भी डूबो दिया। सरकार अब जाकर इस समस्या को पहचान पाई है।

उच्च शिक्षा में तीसरे बदलाव के तहत अब ग्रेजुएशन चार साल का होगा, लेकिन उसमें भी बीच में कोर्स को छोड़ने का प्रावधान होगा। अगर कोई एक साल में कोर्स छोड़ता है तो उसे सर्टििफकेट, दो साल में डिप्लोमा, तीन साल में डिग्री मिलेगी। चार साल बाद रिसर्च ग्रेजुएशन की डिग्री मिलेगी, जिसकी बदौलत छात्र बिना एमए किए सीधे पीएचडी में प्रवेश पा लेगा। चार वर्ष के ग्रेजुएशन का मूल उद्देश्य प्रतिभावान बच्चों को शोध कार्य की तरफ मोड़ना है। ग्रेजुएशन से सीधे पीएचडी में प्रवेश की व्यवस्था ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों में भी है, लेकिन इसे बहुत अच्छा नहीं माना जाता, क्योंकि ग्रेजुएशन के दौरान बहुत कम छात्र शोध करने लायक पढ़ाई कर पाते हैं। भारत में चूंकि स्कूली शिक्षा की स्थिति दयनीय है, इसलिए 12वीं पास छात्रों को ग्रेजुएशन के कोर्स को पढ़ने/समझने में काफी दिक्कत होती है। भारत की स्कूली शिक्षा पद्धति में पढ़े अमीर परिवार के बच्चों का भी इस समस्या से सामना होता है, जब वे विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेने जाते हैं। ज्यादातर भारतीय छात्रों को एक साल का प्री-कोर्स करना पड़ता है, जिसमें उन्हें भाषा, गणित वगैरह की शिक्षा दी जाती है।

चार वर्षीय कोर्स के विपरीत सरकार को दिल्ली विवि के पूर्व कुलपति प्रो. दिनेश सिंह द्वारा तैयार चार वर्षीय ग्रेजुएशन का मॉडल अपनाना चाहिए था, जिसमें पहले साल में छात्र को भाषा, कम्युनिकेशन आदि के बारे में पढ़ना होता और फिर जो कोर्स उसे पसंद आए उसमें प्रवेश लेता। हालांकि इस समस्या को सुलझाने के लिए नई शिक्षा नीति में विश्वविद्यालयों/कॉलेजों को क्रेडिट आधारित सिस्टम की तरफ बढ़ने को कहा गया है, जिसके तहत छात्र अपनी पसंद का विषय पढ़ सकता है। अगर वह विषय उसके विवि/कॉलेज में नहीं है तो दूसरे विवि से ऑनलाइन पढ़ सकता है, जिसे डिग्री कोर्स में अंकित किया जाएगा। इसका फायदा यह होगा कि बड़ी संख्या में छात्रों को नामी-गिरामी शिक्षण संस्थाओं से कोर्स करने का अवसर मिलेगा। उच्च शिक्षा में एक अन्य महत्वपूर्ण बदलाव एमफिल की डिग्री की समाप्ति है।

नई शिक्षा नीति पुरानी शिक्षा नीति से ज्यादा कारगर साबित होने की उम्मीद इसलिए है, क्योंकि ज्यादातर राज्यों में भाजपा और उसके सहयोगी दलों की सरकारें हैं। जब 1986 में शिक्षा नीति लागू हुई थी तब कुछ समय बाद 1989 से ही कई राज्यों में विपक्षी पार्टयिों की सरकारें बननी शुरू हो गई थीं। उन सरकारों ने उस शिक्षा नीति के अच्छे प्रावधानों को भी लागू करने से मना कर दिया था। जैसे तमिलनाडु ने नवोदय विद्यालयों का यह कहकर विरोध किया कि यह हिंदी थोपने की साजिश है। इस वजह से तमिलनाडु के लाखों बच्चे नवोदय विद्यालय की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पाने में असफल रहे।

(लेखक यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के रॉयल होलोवे में पीएचडी स्कॉलर हैं)

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