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covid-19 :- कोरोना का कहर: टूट सकती है जनगणना की 130 साल पुरानी परंपरा

कोरोना महामारी के कारण 130 साल में पहली बार जनगणना की परंपरा टूटने का खतरा खड़ा हो गया है। दो चरणों में होने वाली जनगणना के पहले चरण में घरों और मवेशियों की गिनती का काम एक अप्रैल से 30 सितंबर के बीच पूरा होना था, लेकिन अभी इसकी कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। यदि कोरोना का कहर अगले साल जनवरी तक नहीं थमा तो दूसरे चरण में फरवरी में होने वाली व्यक्तियों की गिनती का काम भी रुक सकता है।


पहले चरण में इस बार घरों और मवेशियों की गिनती के साथ ही असम को छोड़कर देश के अन्य हिस्सों में नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) को भी अपग्रेड किया जाना था, लेकिन कोरोना के कारण लागू पहले लॉकडाउन के साथ ही 25 मार्च को भारत के महापंजीयक (आरजीआइ) ने जनगणना के पहले चरण और एनपीआर को अपग्रेड करने की प्रक्रिया स्थगित कर दी थी। उस समय आरजीआइ को उम्मीद थी कि दो-तीन महीने में कोरोना का कहर थमने के बाद नवंबर के पहले कभी भी पहले चरण को पूरा कर लिया जाएगा, लेकिन कोरोना के मामले कम होने के बजाय दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। सर्दियों के मौसम में नवंबर से बर्फबारी के कारण देश के कई भागों का संपर्क कट जाने की स्थिति में अब यह काम इस साल संभव नहीं दिख रहा। आरजीआइ अधिकारियों का मानना है कि इस साल किसी भी स्थिति में जनगणना का पहला चरण पूरा करना संभव नहीं होगा।

लेकिन आरजीआइ ने अभी तक जनगणना का दूसरा चरण स्थगित नहीं किया है। आरजीआइ कार्यालय अब इस संभावना को तलाशने में जुटा है कि पहले चरण के बिना ही दूसरे चरण यानी लोगों की गिनती का काम पूरा कर लिया जाए। लेकिन इस चरण के लिए भी जनगणना कर्मियों की पहचान और उन्हें प्रशिक्षित करने का काम करना होगा ताकि वे सही तरीके से सटीक डाटा जुटा सकें। इसमें दो से तीन महीने का समय लग सकता है।

फिलहाल कोरोना को रोकने के लिए एकमात्र विकल्प के रूप में इसकी वैक्सीन को देखा जा रहा है। लेकिन अक्टूबर-नवंबर से पहले किसी वैक्सीन के बाजार में आने की उम्मीद नहीं दिख रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि वैक्सीन के बाजार में आने के बाद भी सभी लोगों तक उसके पहुंचने में लंबा समय लग सकता है। ऐसे में अगले साल फरवरी में भी पूरे देश में जनगणना की उम्मीद नहीं की जा सकती।

पहला चरण हुआ स्थगित, फरवरी में दूसरे चरण की उम्मीद भी कम इस बार पहले चरण में घरों व मवेशियों की भी होनी थी गिनती

नौ से 28 फरवरी के बीच होती है जनगणना

भारत दुनिया के ऐसे गिने-चुने देशों में है, जहां 1881 से लगातार हर 10 साल पर जनगणना होती रही है। यहां तक कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भी 1941 में इसे रोका नहीं गया था। आजादी के पहले फरवरी और मार्च के बीच कभी भी जनगणना होती रही थी, लेकिन आजादी के बाद 1951 से इसे नौ फरवरी से 28 फरवरी के बीच तय कर दिया गया। उसके बाद एक और तीन मार्च को दोबारा इस दौरान जन्मे बच्चों की गिनती की जाती रही है, ताकि उस साल एक मार्च को देश की असली जनसंख्या का पता चल सके।

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