Primary Ka Master : शिक्षकों पर निर्भर शिक्षा नीति का भविष्य, भावी भारत के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अध्यापकों की होगी - Get Primary ka Master Latest news by Updatemarts.com, Primary Ka Master news, Basic Shiksha News,

Primary Ka Master : शिक्षकों पर निर्भर शिक्षा नीति का भविष्य, भावी भारत के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अध्यापकों की होगी

शिक्षा एक ऐसा क्षेत्र है, जिससे सभी जुड़े हैं। प्रत्येक पीढ़ी भावी पीढ़ी को अपने से अधिक सुरक्षित और संपन्न भविष्य प्रदान करने के लिए हर प्रकार का उद्यम करती है। प्रगति और विकास इसी मानवीय अपेक्षा और अभिलाषा को पूरा करने के लिए पंचायत से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक नीतियों और परियोजनाओं के स्वरूप में निर्धारित होते हैं। इन नीतियों और परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए शिक्षित और कुशल मानव-शक्ति की


आवश्यकता होती है, जिन्हें शिक्षा व्यवस्था तैयार करती है। किसी भी राष्ट्र की प्रगति, आíथक संपन्नता और सुरक्षा का आधार उसकी शिक्षा व्यवस्था की सतर्कता, गुणवत्ता, गतिशीलता और हर प्रकार के परिवर्तन के सार तत्व को अपने में समाहित कर सकने की क्षमता पर निर्भर करता है। इसी को ध्यान में रखकर पिछले वर्षो में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के निर्माण के लिए एक के बाद एक दो समितियां गठित की गईं। इन दोनों समितियों ने अनेक स्थानों, संस्थाओं का भ्रमण किया, विशेषज्ञों तथा संस्थाओं को आमंत्रित किया, उनसे चर्चा की, उनके प्रश्नों के उत्तर दिए और अपने प्रश्न पूछे। देश के सभी पंचायतों, व्यक्तियों, अध्यापकों, प्राध्यापकों को भी कहा गया कि वे अपनी राय दें। इस अप्रत्याशित राष्ट्रव्यापी विचार-विमर्श का नई शिक्षा नीति के रूप में अद्भुत परिणाम सामने आया। संस्थाओं में और जमीनी स्तर पर, जो समस्याएं दशकों से उपस्थित रही हैं, उनकी बेबाक जानकारी समितियों को मिलीं। उससे भी महत्वपूर्ण यह था कि स्थानीयता में सोचे गए और व्यावहारिक अनुभव के बाद प्रस्तुत किए गए अनेक समाधान आंख खोलने वाले थे। लोग कितनी गहराई से शिक्षा में रुचि लेते हैं, यह सामने आया। इससे न केवल नीति-निर्माताओं की समझ बढ़ी, बल्कि यह भी अनुमान लगाना सहज हुआ कि नीतियों के क्रियान्वयन में सहयोग देने के लिए समाज कितना उत्सुक है।

शिक्षा से हर वर्ग को अपेक्षाएं हैं। हर वर्ग को अच्छे स्कूल में अच्छी गुणवत्ता वाली और कौशल सिखानेवाली शिक्षा चाहिए। उन्हें ऐसी शिक्षा चाहिए, जो जीविकोपार्जन के लिए दर-दर भटकाए नहीं, बल्कि व्यक्तित्व में आत्मविश्वास भर दे। सामान्य जन शिक्षा से अपेक्षा करते हैं कि वह उनके बच्चों को चरित्रवान बनाए। वे भारतीयता से विमुख न हों। अपनी संस्कृति, विरासत और परंपरा से परिचित हों। लोग चाहते हैं कि प्राचीन ग्रंथों से बच्चों का परिचय अवश्य ही कराया जाना चाहिए। नैतिकता और मानवीय मूल्यों तथा संवैधानिक अपेक्षाओं से बच्चों को परिचित कराने की आवश्यकता पर भी हर तरफ से सुझाव आए। इसका उत्तरदायित्व व्यवस्था, सरकार, समाज और खासकर अध्यापकों को स्वीकार करना होगा। इसके लिए आवश्यक व्यवस्थाएं नीति में आनीं चाहिए। बच्चों पर पाठ्यक्रम के बोझ की चर्चा प्रमुखता से हुई। खेलों पर लगातार कम होते ध्यान से भी समितियों के सदस्यों को परिचित कराया गया। यह भी उभरा कि कक्षा के बाहर की गतिविधियां लगातार घटती जा रही हैं। बच्चों पर बस्ते के बोझ से अधिकांश माता-पिता भी त्रस्त थे, विशेषकर निजी स्कूलों से जुड़े पालकों ने इस ओर विशेष ध्यान दिलाया। होमवर्क और प्रोजेक्ट वर्क को लेकर अनेक सुझाव आए। यहां पर सभी सुझावों की ओर इंगित करना संभव नहीं होगा, मगर 2020 की शिक्षा नीति अनेक ऐसे सुझाव लेकर आई है, जिनका क्रियान्वयन भारत की शिक्षा का पूरा परिदृश्य बदल सकता है। अब बस्ते का बोझ कम होगा। परीक्षा पद्धति बदल जाएगी। अंकों की दौड़ को लेकर जो तनाव सारे देश में फैल जाता था, उसे कम करने की संस्तुति की गई है। इससे परीक्षा का भय कम होगा। जो पढ़ा-सीखा है, उसको रट लेने की आवश्यकता अब नहीं होगी, बल्कि उसे समझना होगा और यह सीखना होगा कि उसका उपयोग कैसे किया जा सकता है। उस ज्ञान का कोई महत्व नहीं है, जिसका उपयोग बच्चे उसे प्राप्त करते समय ही जान न लें। मूल्यांकन को लेकर जो विशेष संस्तुतियां की गई हैं, वे कोचिंग संस्थानों से बच्चों और उनके पालकों को मुक्ति दिलाने की क्षमता रखती हैं। प्रारंभिक कक्षाओं में मातृभाषा को माध्यम बनाने का प्रश्न प्रारंभ से ही अत्यंत संवेदनशील रहा है। शिक्षा और उसकी विधा तथा मनोविज्ञान की दृष्टि से सभी स्वीकार करते हैं कि प्रारंभिक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही होनी चाहिए। नई नीति त्रिभाषा सूत्र की संस्तुति करती है। वह माता-पिता, स्कूल या राज्य सरकार पर बिना कोई दबाव डाले दोहराती है कि मातृभाषा माध्यम ही उचित है। इसके अलावा कौशलों के सीखने और कक्षा छह से ही व्यावसायिक शिक्षा से व्यावहारिक परिचय कराने संबंधी उसकी संस्तुतियां अत्यंत सराहनीय और सामयिक हैं। अब बच्चों को अपनी रुचि के अनुसार विषय चुनने के अवसर मिलेंगे।

अध्यापकों की क्षमताओं पर शिक्षा की गुणवत्ता निर्भर करती है। इसके लिए आवश्यक है कि सभी अध्यापक पूर्णरूपेण प्रशिक्षित और संतुष्ट हों। उनकी नियुक्ति नियमित हो और कक्षा में उचित छात्र-अध्यापक अनुपात लागू हो। अध्यापकों को प्रशासनिक कार्यो से अलग रखा जाए। अधिकारी गण शिक्षकों का सम्मान करें और उनकी सभी आवश्यकताएं प्रमुखता के आधार पर पूरी होती रहें। 1964-65 में देश के चार क्षेत्रीय शिक्षा महाविद्यालयों में शिक्षक प्रशिक्षण के चार वर्षीय एकीकृत कार्यक्रम प्रारंभ हुए थे और यह सिद्ध कर दिया गया था कि वही भविष्य के कार्यक्रम होने चाहिए। अब इसे स्वीकार कर लिया गया है। इस पर समितियों को अनेक सुझाव मिले थे। सभी चाहते हैं कि हर अध्यापक स्वयं एक विकसित व्यक्तित्व का धनी हो और वह स्वयं भी जीवनर्पयत अध्ययन और अध्यापन में आगे बढ़ता रहे। नई शिक्षा नीति के सफल क्रियान्वयन और भावी भारत के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अध्यापकों की ही होगी।

(लेखक शिक्षा एवं सामाजिक सद्भाव के क्षेत्र में कार्यरत हैं)

जगमोहन सिंह राजपूत

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